कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 22 प्रेमचन्द की कहानियाँ 22प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का बाइसवाँ भाग
मिस्टर सेठ आज दफ्तर चले, तो उनके कदम पीछे रह जाते थे! न जाने आज वहाँ क्या हाल हो। रोज की तरह दफ्तर में पहुँच कर उन्होंने चपरासियों को डाँटा नहीं, क्लर्कों पर रोब नहीं जमाया, चुपके से जाकर कुर्सी पर बैठ गये। ऐसा मालूम होता था, कोई तलवार सिर पर लटक रही है। साहब की मोटर की आवाज सुनते ही उनके प्राण सूख गये। रोज वह अपने कमरे में बैठे रहते थे। जब साहब आकर बैठ जाते थे, तब आध घण्टे के बाद मिसलें लेकर पहुँचते थे। आज वह बरामदे में खड़े थे, साहब उतरे तो झुककर उन्होंने सलाम किया। मगर साहब ने मुँह फेर लिया।
लेकिन वह हिम्मत नहीं हारे, आगे बढ़कर पर्दा हटा दिया, साहब कमरे में गये, तो सेठ साहब ने पंखा खोल दिया, मगर जान सूखी जाती थी कि देखें, कब सिर पर तलवार गिरती है। साहब ज्यों ही कुर्सी पर बैठे, सेठ ने लपककर, सिगार-केस और दियासिलाई मेज पर रख दी।
एकाएक ऐसा मालूम हुआ, मानो आसमान फट गया हो। साहब गरज रहे थे, तुम दगाबाज आदमी हो!
सेठ ने इस तरह साहब की तरफ देखा, जैसे उनका मतलब नहीं समझे।
साहब ने फिर गरज कर कहा- तुम दगाबाज आदमी हो।
मिस्टर सेठ का खून गर्म हो उठा, बोले- मेरा तो ख्याल है कि मुझसे बड़ा राजभक्त इस देश में न होगा।
साहब- तुम नमकहारम आदमी है।
मिस्टर सेठ के चेहरे पर सुर्खी आयी- आप व्यर्थ ही अपनी जबान खराब कर रहे हैं।
साहब- तुम शैतान आदमी है।
मिस्टर सेठ की आँखों में सुर्खी आयी- आप मेरी बेइज्जती कर रहे हैं। ऐसी बातें सुनने की मुझे आदत नहीं है।
साहब- चुप रहो, यू ब्लडी। तुमको सरकार पाँच सौ रुपये इसलिए नहीं देता कि तुम अपने वाइफ के हाथ से काँग्रेस का चंदा दिलवाये। तुमको इसलिए सरकार रुपया नहीं देता।
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