कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 22 प्रेमचन्द की कहानियाँ 22प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का बाइसवाँ भाग
दोपहर को जब मिस्टर सेठ मुँह लटकाये हुए घर पहुँचे तो गोदावरी ने पूछा- आज जल्दी कैसे आ गये?
मिस्टर सेठ दहकती हुई आँखों से देख कर बोले- जिस बात पर लगी थीं, वह हो गयी। अब रोओ, सिर पर हाथ रखके!
गोदावरी- बात क्या हुई, कुछ कहो भी तो?
सेठ- बात क्या हुई, उसने आँखें दिखायीं, मैंने चाँटा जमाया और इस्तीफा दे कर चला आया।
गोदावरी- इस्तीफा देने की क्या जल्दी थी?
सेठ- और क्या सिर के बाल नुचवाता? तुम्हारा यही हाल है, तो आज नहीं, कल अलग होना ही पड़ता।
गोदावरी- खैर, जो हुआ, अच्छा ही हुआ। आज से तुम भी कांग्रेस में शरीक हो जाओ।
सेठ ने ओठ चबा कर कहा- लजाओगी तो नहीं, ऊपर से घाव पर नमक छिड़कती हो।
गोदावरी- लजाऊँ क्यों, मैं तो खुश हूँ कि तुम्हारी बेड़ियॉँ कट गयीं।
सेठ- आखिर कुछ सोचा है, काम कैसे चलेगा?
गोदावरी- सब सोच लिया है। मैं चल कर दिखा दूँगी। हाँ, मैं जो कुछ कहूँ, वह तुम किये जाना। अब तक मैं तुम्हारे इशारे पर चलती थी, अब से तुम मेरे इशारे पर चलना। मैं तुमसे किसी बात की शिकायत न करती थी; तुम जो कुछ खिलाते थे खाती थी, जो कुछ पहनाते थे पहनती थी। महल में रखते, महल में रहती। झोपड़ी में रखते, झोपड़ी में रहती। उसी तरह तुम भी रहना। जो काम करने को कहूँ वह करना। फिर देखूँ कैसे काम नहीं चलता। बड़प्पन सूट-बूट और ठाठ-बाट में नहीं है। जिसकी आत्मा पवित्र हो, वही ऊँचा है। आज तक तुम मेरे पति थे आज से मैं तुम्हारा पति हूँ।
सेठ जी उसकी और स्नेह की आँखों से देख कर हँस पड़े।
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