कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 24 प्रेमचन्द की कहानियाँ 24प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का चौबीसवाँ भाग
ईश्वरदास- क्या अभी तक आप मेरे इन्तजार में बैठी हुई हैं? नाहक गर्मी में परेशान हुईं।
माया ने थाली परसकर उसके सामने रखते हुए कहा- मैं खाना पकाना नहीं जानती? अगर कोई चीज़ अच्छी न लगे तो माफ़ कीजिएगा।
ईश्वरदास ने खूब तारीफ़ करके एक-एक चीज खायीं। ऐसी स्वादिष्ट चीजें उसने अपनी उम्र में कभी न खायी थीं।
‘आप तो कहती थी मैं खाना पकाना नहीं जानती?’
‘तो क्या मैं ग़लत कहती थी?’
‘बिलकुल ग़लत। आपने खुद अपनी ग़लती साबित कर दी। ऐसे खस्ते मैंने जिन्दगी में भी न खाये थे।’
‘आप मुझे बनाते हैं, अच्छा साहब बना लीजिए।’
‘नहीं, मैं बनाता नहीं, बिलकुल सच कहता हूँ। किस-किस चीज की तारीफ करूं? चाहता हूँ कि कोई ऐब निकालूँ, लेकिन सूझता ही नहीं। अबकी मैं अपने दोस्तों की दावत करूंगा तो आपको एक दिन तकलीफ दूंगा।’
‘हां, शौक़ से कीजिए, मैं हाजिर हूँ।’
खाते-खाते दस बज गये। तिलोत्तमा सो गयी। गली में भी सन्नाटा हो गया। ईश्वरदास चलने को तैयार हुआ, तो माया बोली- क्या आप चले जाएंगे? क्यों न आज यहीं सो रहिए? मुझे कुछ डर लग रहा है। आप बाहर के कमरे में सो रहिएगा, मैं अन्दर आंगन में सो रहूँगी।
ईश्वरदास ने क्षण-भर सोचकर कहा- अच्छी बात है। आपने पहले कभी न कहा कि आपको इस घर में डर लगता है वर्ना मैं किसी भरोसे की बुड्ढी औरत को रात को सोने के लिए ठीक कर देता।
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