कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 24 प्रेमचन्द की कहानियाँ 24प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का चौबीसवाँ भाग
सोलहवें दिन विधवा ने मदारीलाल से कहा- भैया जी, आपने हमारे साथ जो उपकार और अनुग्रह किये हैं, उनसे हम मरते दम तक उऋण नहीं हो सकते। आपने हमारी पीठ पर हाथ न रखा होता, तो न-जाने हमारी क्या गति होती। कहीं रूख की भी छॉँह तो नहीं थी। अब हमें घर जाने दीजिए। वहाँ देहात में खर्च भी कम होगा और कुछ खेती बारी का सिलसिला भी कर लूँगी। किसी न किसी तरह विपत्ति के दिन कट ही जायँगे। इसी तरह हमारे ऊपर दया रखिएगा।
मदारीलाल ने पूछा- घर पर कितनी जायदाद है?
रामेश्वरी- जायदाद क्या है, एक कच्चा मकान है और दस-बारह बीघे की काश्तकारी है। पक्का मकान बनवाना शुरू किया था; मगर रुपये पूरे न पड़े। अभी अधूरा पड़ा हुआ है। दस-बारह हजार खर्च हो गये और अभी छत पड़ने की नौबत नहीं आयी।
मदारीलाल- कुछ रुपये बैंक में जमा हैं, या बस खेती ही का सहारा है?
विधवा- जमा तो एक पाई भी नहीं है, भैया जी! उनके हाथ में रुपये रहने ही नहीं पाते थे। बस, वही खेती का सहारा है।
मदारीलाल- तो उन खेतों में इतनी पैदावार हो जायगी कि लगान भी अदा हो जाय और तुम लोगों की गुजर-बसर भी हो?
रामेश्वरी- और कर ही क्या सकते हैं, भैया जी! किसी न किसी तरह जिंदगी तो काटनी ही है। बच्चे न होते तो मैं जहर खा लेती।
मदारीलाल- और अभी बेटी का विवाह भी तो करना है।
विधवा- उसके विवाह की अब कोई चिंता नहीं। किसानों में ऐसे बहुत से मिल जायेंगे, जो बिना कुछ लिये-दिये विवाह कर लेंगे।
मदारीलाल ने एक क्षण सोचकर कहा- अगर मैं कुछ सलाह दूँ, तो उसे मानेंगी आप?
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