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प्रेमचन्द की कहानियाँ 25

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :188
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9786
आईएसबीएन :9781613015230

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का पच्चीसवाँ भाग


यह कहते-कहते माधवी का कंठ रुँध गया और आँखों से प्रेम की धारा बहने लगी। उससे वहाँ न बैठा गया। उठकर प्रणाम किया और विरजन के पास आकर बैठ गयी। वृजरानी ने उसे गले लगा लिया और पूछा- क्या बातचीत हुई?

माधवी- जो तुम चाहती थीं।

वृजरानी- सच, क्या बोले?

माधवी- यह न बताऊंगी।

वृजरानी को मानों पड़ा हुआ धन मिल गया। बोली- ईश्वर ने बहुत दिनों में मेरा मनोरथ पूरा किया। मैं अपने यहाँ से विवाह करूंगी।

माधवी नैराश्य भाव से मुस्करायी। विरजन ने कम्पित स्वर से कहा- हमको भूल तो न जायेगी? उसकी आँखों से आँसू बहने लगे। फिर वह स्वर सँभालकर बोली- हमसे तू बिछुड़ जायेगी।

माधवी- मैं तुम्हें छोड़कर कहीं न जाऊंगी।

विरजन- चल; बातें न बना।

माधवी- देख लेना।

विरजन- देखा है। जोड़ा कैसा पहनेगी?

माधवी- उज्ज्वल, जैसे बगुले का पर।

विरजन- सोहाग का जोड़ा केसरिया रंग का होता है।

माधवी- मेरा श्वेत रहेगा।

विरजन- तुझे चन्द्रहार बहुत भाता था। मैं अपना दे दूंगी।

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