कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 25 प्रेमचन्द की कहानियाँ 25प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का पच्चीसवाँ भाग
गंगी- वह हैं ठाकुर गरीबसिंह। दूध तो नहीं है अम्माँ, रस में मिला देती?
माँ- है क्यों नहीं, हाड़ी में देख।
गंगी ने सारी मलाई उतारकर रस में मिला दी और लोटा-गिलास लिये बाहर निकली। ठाकुर ने उसकी ओर देखा। गंगी ने सिर झुका लिया! यह संकोच उसमें कहाँ से आ गया?
ठाकुर ने रस लिया और राम-राम करके चला गया।
मैकू बोला- कितना दुबला हो गया है।
गंगी- बीमार हैं क्या?
मैकू- चिन्ता है और क्या? अकेला आदमी है, इतनी बड़ी गिरस्ती; क्या करे।
गंगी को रात-भर नींद नहीं आयी। उन्हें कौन-सी चिन्ता है। दादा से कुछ कहा भी तो नहीं। क्यों इतने सकुचाते हैं। चेहरा कैसा पीला पड़ गया है।
सबेरे गंगी ने माँ से कहा- गरीबसिंह अबकी बहुत दुबले हो गये हैं अम्माँ!
माँ- अब वह बेफिक्री कहाँ है बेटी। बाप के जमाने में खाते थे और खेलते थे। अब तो गिरस्ती का जंजाल सिर पर है।
गंगी को इस जवाब से सन्तोष न हुआ। बाहर जाकर मैकू से बोली- दादा, तुमने गरीबसिंह को समझा नहीं दिया-क्यों इतनी चिन्ता करते हो?
मैकू ने आँखें फाडक़र देखा और कहा- जा, अपना काम कर।
गंगी पर मानो बज्रपात हो गया। वह कठोर उत्तर और दादा के मुँह से। हाय! दादा को भी उनका ध्यान नहीं। कोई उसका मित्र नहीं। उन्हें कौन समझाए! अबकी वह आएँगे तो मैं खुद उन्हें समझाऊँगी।
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