कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 27 प्रेमचन्द की कहानियाँ 27प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का सत्ताइसवाँ भाग
उस रात रामधन के घर चूल्हा नहीं जला। खाली दाल पकाकर ही पी ली।
रामधन लेटा, तो सोच रहा था- मुझसे तो यही अच्छे !
4. बारात
आज बाबू देवकीनाथ अपनी पंद्रह साल की ब्याहता बीवी को छोड़कर नई शादी करने जा रहे हैं। रिश्तेदार जमा हैं। मगर कोई यह पूछने की जहमत गवारा नहीं करता कि आखिर उन बेकस पर इतना कोप क्यों है? बाबू देवकीनाथ से क्यों बुरे बनें? दरवाजे पर नौबत बज रही है। अंदर स्त्रियाँ ब्याह के गीत गा रही हैं। नौकर-चाकर खुशरंग वर्दियाँ पहने इधर-उधर दौड़ रहे हैं। बाराती लोग अपनी-अपनी साज-सज्जा में मसरूफ़ हैं। मगर इस शादी के साथ एक अज़ीज़ जान का खून हो रहा है, इसकी किसी को परवा नहीं।
आज पंद्रह साल हुए जब देवकीनाथ की शादी फूलवती से हुई थी। फूलवती हसीन थी, बातमीज़ थी, मधुरभाषी, शिक्षित थी। देवकीनाथ भी शिष्ट आचरण वाले, मुस्तकिल मिजाज, रोशन-ख्याल। मगर पहले ही दिन दूल्हा-दुल्हन में कुछ ऐसी बदमजगी पैदा हुई कि दोनों में एक भीषण खाड़ी खड़ी हो गई, और ज़माने के साथ-साथ वह बड़ी होती चली गई। यहाँ तक कि आज देवकीनाथ नई शादी करने पर आमादा हो गए।
और इस बदमजगी का बाइस क्या था? सामाजिक कार्यों में विरोध। देवकीनाथ पुरानी तहज़ीब के कायल थे, फूलवती नई रोशनी की अनुरक्त। पुरानी तहज़ीब परदा चाहती है, सहनशीलता और सब्र चाहती है। नई रोशनी आज़ादी चाहती है, सम्मान चाहती है, हुकूमत चाहती है। देवकीनाथ चाहते हैं फूलवती मेरी माँ की खिदमत करे, बगैर इजाजत घर से कदम न निकाले। लंबा-सा घूँघट निकालकर चले। फूलवती को इन बातों में से एक भी पसंद न थी। दोनों में मुबाहिसे हुए। कटु भाषण की नौबत आई। शुक्ररंजी हुई। मियाँ ने बीवी के मैकेवालों की अपमान की। बीवी ने तुर्की-ब-तुर्की जवाब दिया। मियाँ ने डांट बताई। बीवी ने मैके की राह ली। मैका भी दूर न था। दस मिनट में घर जा पहुँची। महीनों तक दोनों खिंचे-खिंचे रहे। फिर फूलवती मनाई गई। ससुराल आई। मगर दो ही चार दिन में वही क़िस्से शुरू हो गए। न देवकीनाथ अपना सुधार कर सकते थे, न फूलवती अपने स्वभाव की। अबके बरसों बोलचाल बंद रही।
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