कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 28 प्रेमचन्द की कहानियाँ 28प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का अट्ठाइसवाँ भाग
गंगाजली ने कहा- मेरे गहने झगडू साहु के यहाँ गिरों रख दो। मैंने जोड़ लिया है। देने भर के रुपये हो जायँगे।
चौधरी ने ठंडी साँस ले कर कहा- बेटी ! तुमको मुझसे यह बात कहते लाज नहीं आती। वेद-शास्त्र में मुझे तुम्हारे गाँव के कुएँ का पानी पीना भी मना है। तुम्हारी ड्योढ़ी में भी पैर रखने का निषेध है। क्या तुम मुझे नरक में ढकेलना चाहती हो?
गंगाजली उत्तर के लिए पहले ही से तैयार थी। बोली- मैं अपने गहने तुम्हें दिये थोड़े ही देती हूँ। इस समय ले कर काम चलाओ, चैत में छुड़ा देना। चौधरी ने कड़क कर कहा यह मुझसे न होगा।
गंगाजली उत्तेजित हो कर बोली- तुमसे यह न होगा तो मैं आप ही जाऊँगी, मुझसे घर की यह दुर्दशा नहीं देखी जाती।
चौधरी ने झुँझला कर कहा- बिरादरी में कौन मुँह दिखाऊँगा?
गंगाजली ने चिढ़ कर कहा- बिरादरी में कौन ढिंढोरा पीटने जाता है।
चौधरी ने फैसला सुनाया- जगहँसाई के लिए मैं अपना धर्म न बिगाडूँगा।
गंगाजली बिगड़कर बोली- मेरी बात नहीं मानोगे तो तुम्हारे ऊपर मेरी हत्या पड़ेगी। मैं आज ही इस बेतवा नदी में कूद पडूँगी। तुमसे चाहे घर में आग लगते देखा जाय, पर मुझसे तो न देखा जायगा।
चौधरी ने ठंडी साँस ले कर कातर स्वर में कहा- बेटी, मेरा धर्म नाश मत करो। यदि ऐसा ही है तो अपनी किसी भावज के गहने माँग कर लाओ।
गंगाजली ने गम्भीर स्वर में कहा- भावजों से कौन अपना मुँह नोचवाने जायगा। उनको फिकर होती तो क्या मुँह में दही जमा था, कहतीं नहीं।
चौधरी निरुत्तर हो गये। गंगाजली घर में जा कर गहनों की पिटारी लायी और एक-एक करके सब गहने चौधरी के अँगोछे में बाँध दिये। चौधरी ने आँखों में आँसू भर कर कहा- हाय राम, इस शरीर की क्या गति लिखी है ! यह कह कर उठे। बहुत सम्हालने पर भी आँखों में आँसू न छिपे।
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