कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 28 प्रेमचन्द की कहानियाँ 28प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का अट्ठाइसवाँ भाग
कामतानाथ ने निष्ठा-भाव से कहा- अच्छा घर दहेज देने ही से नहीं मिलता भैया! जैसा तुम्हारी भाभी ने कहा, यह नसीबों का खेल है। मैं तो चाहता हूँ कि मुरारीलाल को जवाब दे दिया जाये और कोई ऐसा घर खोजा जाये, जो थोड़े में राजी हो जाये। इस विवाह में मैं एक हजार से ज्यादा नहीं खर्च कर सकता। पंडित दीनदयाल कैसे हैं?
उमा ने प्रसन्न होकर कहा- बहुत अच्छे। एम.ए., बी.ए. न सही, यजमानों से अच्छी आमदनी है।
दयानाथ ने आपत्ति की- अम्माँ से भी पूछ तो लेना चाहिए।
कामतानाथ को इसकी कोई जरूरत न मालूम हुई। बोले- उनकी तो जैसे बुद्धि ही भ्रष्ट हो गयी। वही पुराने युग की बातें! मुरारीलाल के नाम पर उधार खाये बैठी हैं। यह नहीं समझतीं कि वह जमाना नहीं रहा। उनको तो बस, कुमुद मुरारी पंडित के घर जाये, चाहे हम लोग तबाह हो जायें।
उमा ने एक शंका उपस्थित की- अम्माँ अपने सब गहने कुमुद को दे देंगी, देख लीजिएगा।
कामतानाथ का स्वार्थ नीति से विद्रोह न कर सका। बोले- गहनों पर उनका पूरा अधिकार है। यह उनका स्त्रीधन है। जिसे चाहें, दे सकती हैं।
उमा ने कहा- स्त्रीधन है तो क्या वह उसे लुटा देंगी। आखिर वह भी तो दादा ही की कमाई है।
'किसी की कमाई हो। स्त्रीधन पर उनका पूरा अधिकार है!'
'यह कानूनी गोरखधंधे हैं। बीस हजार में तो चार हिस्सेदार हों और दस हजार के गहने अम्माँ के पास रह जायें। देख लेना, इन्हीं के बल पर वह कुमुद का विवाह मुरारी पंडित के घर करेंगी।'
उमानाथ इतनी बड़ी रकम को इतनी आसानी से नहीं छोड़ सकता। वह कपट-नीति में कुशल है। कोई कौशल रचकर माता से सारे गहने ले लेगा। उस वक्त तक कुमुद के विवाह की चर्चा करके फूलमती को भड़काना उचित नहीं। कामतानाथ ने सिर हिलाकर कहा- भाई, मैं इन चालों को पसंद नहीं करता।
उमानाथ ने खिसियाकर कहा- गहने दस हजार से कम के न होंगे।
कामता अविचलित स्वर में बोले- कितने ही के हों; मैं अनीति में हाथ नहीं डालना चाहता।
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