लोगों की राय

कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 30

प्रेमचन्द की कहानियाँ 30

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :137
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9791
आईएसबीएन :9781613015285

Like this Hindi book 4 पाठकों को प्रिय

52 पाठक हैं

प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का तीसवाँ भाग


यह सब हो गया; किंतु वह बात, जो अब होनी चाहिए थी, न हुई। रामरक्षा की माँ अब भी अयोध्या में रहती हैं और अपनी पुत्रवधू की सूरत नहीं देखना चाहतीं।

0 0 0

 

6. मर्यादा की वेदी

यह वह समय है जब चित्तौड़ में मृदुभाषिणी मीरा प्यासी आत्माओं को ईश्वर-प्रेम के प्याले पिलाती थी। रणछोड़जी के मंदिर में जब भक्ति से विह्वल होकर वह अपने मधुर स्वरों में अपने पीयूष-पूरित पदों को गाती, तो श्रोतागण प्रेमानुराग से उन्मत्त हो जाते। प्रतिदिन यह स्वर्गीय आनंद उठाने के लिए सारे चित्तौड़ के लोग ऐसे उत्सुक होकर दौड़ते, जैसे दिन-भर की प्यासी गायें दूर से किसी सरोवर को देखकर उसकी ओर भागती हैं और इस प्रेम-सरोवर से केवल चित्तौडवासियों ही की तृप्ति न होती थी, बल्कि समस्त राजपूताना की मरुभूमि इस सुधा-सागर से प्लावित हो जाती थी। एक बार ऐसा संयोग हुआ कि झालावार के रावसाहब और मंदार राज्य के कुमार दोनों ही लाव-लश्कर के साथ चित्तौड़ आए। रावसाहब के साथ उनकी राजकुमारी प्रभा भी थी, जिसके रूप और गुण की दूर-दूर तक चर्चा थी। यहीं रणछोड़ जी के मंदिर में दोनों को आँखें मिलीं। प्रेम ने बाण चलाया।

राजकुमार सारे दिन उदासीन भाव से शहर की गलियों में विचरा करता। राजकुमारी विरह से व्यथित अपने महल के झरोखों से झाँका करती। दोनों व्याकुल होकर संध्या समय मंदिर में आते और यहाँ चंद्र को देखकर कुमुदिनी खिल जाती। प्रेम प्रवीणा मीरा ने कई बार इन दोनों प्रेमियों को सतृष्ण नेत्रों से ताकते हुए पाकर उनके मन के भावों को ताड़ लिया। एक दिन कीर्तन के पश्चात् जब झालावार के रावसाहब चलने लगे तो उसने मंदार के राजकुमार को बुलाकर उनके सामने खड़ा कर दिया और कहा- ''रावसाहब! मैं प्रभा के लिए यह वर लाई हूँ! आप इसे स्वीकार कीजिए।''

प्रभा लज्जा से गड़-सी गई। राजकुमार के गुण शील पर रावसाहब पहले ही से मोहित हो रहे थे। उन्होंने तुरंत उसे छाती से लगा लिया।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

विनामूल्य पूर्वावलोकन

Prev
Next
Prev
Next

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book