कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 32 प्रेमचन्द की कहानियाँ 32प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का बत्तीसवाँ भाग
'पहले तुम बतलाओ।'
'मैं करूँगी।'
'तो मैं भी करूँगा।'
'मगर इस एक बात के सिवा मैं और सभी बातों में स्वतंत्र रहूँगी!'
'और मैं भी इस एक बात के सिवा हर बात में स्वतंत्र रहूँगा।'
'मंजूर।'
'मंजूर!'
'तो कब से?'
'जब से तुम कहो।'
'मैं तो कहती हूँ, कल ही से।'
'तय। लेकिन अगर तुमने इसके विरुद्ध आचरण किया तो?'
'और तुमने किया तो?'
'तुम मुझे घर से निकाल सकती हो; लेकिन मैं तुम्हें क्या सजा दूँगा?'
'तुम मुझे त्याग देना, और क्या करोगे?'
'जी नहीं, तब इतने से चित्त को शान्ति न मिलेगी। तब मैं चाहूँगा तुम्हे जलील करना; बल्कि तुम्हारी हत्या करना।'
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