लोगों की राय

कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 34

प्रेमचन्द की कहानियाँ 34

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :146
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9795
आईएसबीएन :9781613015322

Like this Hindi book 6 पाठकों को प्रिय

428 पाठक हैं

प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का चौंतीसवाँ भाग


केशव बड़ी देर तक इसी उधेड़बुन में रहा। अंत को उसने यह समस्या भी हल कर ली। श्यामा से बोला - जा कर कूड़ा फेंकनेवाली टोकरी उठा ला। अम्माजी को मत दिखाना।

श्यामा - वह तो बीच से फटी हुई है, उसमें से धूप न जाएगी?

केशव ने झुंझला कर कहा - तू टोकरी तो ला, मैं उसका सूराख बंद करने की कोई हिकमत निकालूँगा न।

श्यामा दौड़ कर टोकरी उठा लाई। केशव ने उसके सूराख में थोड़ा-सा कागज लूंस दिया और तब टोकरी को एक टहनी से टिकाकर बोला - देख, ऐसे ही घोंसले पर इसकी आड़ कर दूंगा। तब कैसे धूप जाएगी? श्यामा ने मन में सोचा - भैया कितने चतुर हैं!

गर्मी के दिन थे। बाबूजी दफ्तर गए हुए थे। माता दोनों बालकों को कमरे में सुला कर खुद सो गई थी, पर बालकों की आँखों में आज नींद कहाँ? अम्माजी को बहलाने के लिए दोनों दम साधे, आँखें बंद किए, मौके का इंतजार कर रहे थे। ज्यों ही मालूम हुआ कि अम्माजी अच्छी तरह सो गईं, दोनों चुपके से उठे और बहुत धीरे से द्वार की सिटकनी खोल कर बाहर निकल आए। अंडों की रक्षा करने की तैयारियाँ होने लगीं।

केशव कमरे से एक स्टूल उठा लाया, पर जब उससे काम न चला, तो नहाने की चौकी ला कर स्टूल के नीचे रखी और डरते-डरते स्टूल पर चढ़ा। श्यामा दोनों हाथों से स्टूल को पकड़े हुई थी। स्टूल चारों पाए बराबर न होने के कारण, जिस ओर ज्यादा दबाव पाता था, जरा-सा हिल जाता था। उस समय केशव को कितना संयम करना पड़ता था, यह उसी का दिल जानता थ। दोनों हाथों से कार्निस पकड़ लेता और श्यामा को दबी आवाज से डाँटता - अच्छी तरह पकड़, नहीं उतर कर बहुत मारूँगा। मगर बिचारी श्यामा का मन तो ऊपर कार्निस पर था, बार-बार उसका ध्यान इधर चला जाता और हाथ ढीले पड़ जाते। केशव ने ज्यों ही कार्निस पर हाथ रखा, दोनों पंडुक उड़ गए। केशव ने देखा कि कार्निस पर थोड़े-से तिनके बिछे हुए हैं और उस पर तीन अंडे पड़े हैं। जैसे घोंसले पर देखे थे, ऐसा कोई घोंसला नहीं है।

श्यामा ने नीचे से पूछा - के बच्चे हैं भैया?

केशव - तीन अंडे हैं। अभी बच्चे नहीं निकले।

श्यामा - जरा हमें दिखा दो भैया, कितने बड़े हैं?

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

विनामूल्य पूर्वावलोकन

Prev
Next
Prev
Next

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book