कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 35 प्रेमचन्द की कहानियाँ 35प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का पैंतीसवाँ भाग
कितनी घोर पशुता थी! यही प्राणी जरा देर पहले बादशाह का विश्वास पात्र था।
एकाएक बादशाह ने कहा- पहले इस नमकहराम की खिलअत उतार लो। मैं नहीं चाहता कि मेरी खिलअत की बेइज्जती हो।
किसकी मजाल थी, जो जरा भी जबान हिला सकता? सिपाहियों ने राजा साहब के वस्त्र उतारने शुरू किए। दुर्भाग्यवश उनकी एक जेब से पिस्तौल निकल आई। उसकी दोनों नालियाँ भरी हुई थीं। पिस्तौल देखते ही बादशाह की आँखों से चिनगारियाँ निकलने लगीं। बोले- कसम है हजरत इमामहुसेन की, अब इसकी जाँबख्शी नहीं करूँगा। मेरे साथ भरी हुई पिस्तौल की क्या जरूरत! जरूर इसकी नीयत में फितूर रहता था। अब मैं इसे कुत्तों से नुचवाऊँगा। (मुसाहबों की तरफ देखकर) देखी तुम लोगों ने इसकी नीयत! मैं अपनी आस्तीन में साँप पाले हुए था। आप लोगों के खयाल में इसके पास भरी हुई पिस्तौल का निकलना क्या माने रखता है?
अँग्ररेजों को केवल राजा साहब को नीचा दिखाना मंजूर था। वे उन्हें अपना मित्र बनाकर जितना काम निकाल सकते थे, उतना उनके मारे जाने में नहीं इसी से एक अँग्ररेज-मुसाहब ने कहा- मुझे तो इसमें कोई गैर-मुनासिब बात नहीं मालूम पड़ती। जेनरल आपका बाडी-गार्ड (रक्षक) है। उसे हमेशा हथियार-बंद रहना चाहिए–खासकर जब आपकी खिदमत में हो। न मालूम, किस वक्त इसकी जरूरत आ पड़े।
दूसरे अँग्ररेज-मुसाहबों ने भी इस विचार की पुष्टि की। बादशाह के क्रोध की ज्वाला कुछ शांत हुई। अगर ये ही बातें किसी हिन्दुस्तानी मुसाहब की जबान से निकली होतीं, तो उसकी जान की खैरियत न थी। कदाचित् अँगरेजों को अपनी न्यायपरता का नमूना दिखाने ही के लिए उन्होंने यह प्रश्न किया था।
बोले- कसम इमाम की, तुम सब-के-सब शेर के मुँह से उसका शिकार छीनना चाहते हो! पर मैं एक न मानूँगा, बुलाओ कप्तान साहब को। मैं उनसे यही सवाल करता हूँ। अगर उन्होंने भी तुम लोगों के ख्याल की ताईद की, तो इसकी जान न लूँगा और, उनकी राय इसके खिलाफ हुई, तो इस मक्कार को इसी वक्त जहन्नुम भेज दूँगा। मगर खबरदार, कोई उनकी तरफ किसी तरह का इशारा न करे; वरना मैं जरा भी रू-रियायत न करूँगा। सब-के-सब सिर झुकाए बैठे रहें।
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