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प्रेमचन्द की कहानियाँ 35

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :380
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9796
आईएसबीएन :9781613015339

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का पैंतीसवाँ भाग


मंदिर से लौटकर सारंधा राजा चंपतराय के पास गई और बोली- ''प्राणनाथ! आपने जो वचन दिया था, उसे पूरा कीजिए।''

राजा ने चौंक कर पूछा- ''तुमने अपना वादा पूरा कर लिया?''

रानी ने वह प्रतिज्ञा-पत्र राजा को दे दिया। चंपतराय ने उसे गौर से देखा फिर बोले- ''अब मैं चलूँगा और ईश्वर ने चाहा तो एक बेर फिर शत्रुओं की खबर लूँगा। लेकिन सारन! सच बताओ इस पत्र के लिए क्या देना पड़ा?''

रानी ने कुंठित स्वर से कहा- ''बहुत कुछ।''

राजा- ''सुनूँ?''

रानी- ''एक जवान पुत्र।''

राजा को बाण-सा लगा। पूछा- ''कौन? अंगदराय?''

रानी- ''नहीं।''

राजा- ''रतनसाह?''

रानी- ''नहीं।''

राजा- ''छत्रसाल?''

रानी-- ''हाँ।''

जैसे कोई पक्षी गोली खाकर परों को फड़फड़ाता है और तब बेदम होकर गिर पड़ता है, उसी भाँति चंपतराय पलँग से उछले और फिर अचेत होकर गिर पड़े। छत्रसाल उनका परम-प्रिय पुत्र था। उनके भविष्य की सारी कामनाएँ उसी पर अवलंबित थीं। जब चेत हुआ तो बोले- ''सारन, तुमने बुरा किया। अगर छत्रसाल मारा गया तो बुँदेला-वंश का नाश हो जाएगा।''

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