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प्रेमचन्द की कहानियाँ 35

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :380
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9796
आईएसबीएन :9781613015339

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का पैंतीसवाँ भाग


राजा ने नौजवान की लाश को कन्धे पर रखा और अंधे के पास जाकर यह दुःखद समाचार सुनाया। बेचारे दोनों बुड्ढे, तिस पर दोनों आंखों के अंधे, और यही इकलौता बेटा उनकी जिंदगी का सहारा था- इसके मरने का समाचार सुनकर फूटकर रोने लगे। जब आंसू जरा थमे तो उन्हें राजा पर गुस्सा आया। उनको खूब जी भरकर कोसा और यह शाप देकर कि जिस तरह बेटे के शोक में हमारी जान निकल रही है उसी तरह तुम भी बेटे ही के शोक में मरोगे, दोनों मर गये। राजा दशरथ भी रो-धोकर यहां से विदा हुए।

राजा दशरथ के अब तक कोई संतान न थी। संतान ही के लिए उन्होंने तीन शादियां की थीं। बड़ी रानी का नाम कौशल्या था, मंझली रानी का सुमित्रा और छोटी रानी का कैकेयी। तीनों रानियां भी संतान के लिए तरसती रहती थीं। अंधे का शाप राजा के लिये वरदान हो गया। चाहे बेटे के शोक में मरना ही पड़े, बेटे का मुंह तो देखेंगे। ताज और तख्त का वारिस तो पैदा होगा। इस ख्याल से राजा को बड़ी तसकीन हुई। इसके कुछ ही दिन बाद अपने गुरु वशिष्ठ के मशविरे से राजा ने एक यज्ञ किया। इसमें बहुत से ऋषिमुनि जमा हुए और सबने राजा को आशीर्वाद दिया। यज्ञ के पूरे होते ही तीनों ही रानियां गर्भवती हुईं और नियत समय के बाद तीनों रानियों के चार राजकुमार पैदा हुए। कौशल्या से रामचन्द्र हुए, सुमित्रा से लक्ष्मण और शत्रुघ्न और कैकेयी से भरत। सारे राज में मंगलगीत गाये जाने लगे। प्रजा ने खूब उत्सव मनाया। राजा ने इतना सोना-चांदी दान किया कि राज में कोई निर्धन न रह गया। उनकी दिली कामना पूर्ण हुई। कहां एक बेटे का मुंह देखने को तरसते थे, कहां चार-चार बेटे हो गये। घर गुलजार हो गया। ज्योतिहीन आंखें रोशन हो गयीं।

चारों लड़कों का लालनपालन होने लगा। जब वह जरा सयाने हुए तो गुरु वशिष्ठ ने उन्हें शिक्षा देना शुरू किया। चारों लड़के बहुत ही जहीन थे, थोड़े ही दिनों में वेदशास्त्र सब खत्म कर लिये और रणविद्या में भी खूब होशियार हो गये। धनुविद्या में, भाला चलाने में, कुश्ती में, किसी फन में इनके समान न था। मगर उनमें घमण्ड नाम को भी न था। चारों बुजुर्गों का अदब करते थे। छोटों को भी वह सख्तसुस्त न कहते। उनमें आपस में बड़ी गहरी मुहब्बत थी। एक दूसरे के लिए जान देते थे। चारों ही सुन्दर, स्वस्थ और सुशील थे। उन्हें देखकर सबके मुंह से आशीर्वाद निकलता था। सब कहते थे, यह लड़के खानदान का नाम रोशन करेंगे। यों तो चारों में एकसी मुहब्बत थी, मगर लक्ष्मण को रामचन्द्र से, शत्रुघ्न को भरत से खास प्रेम था। राजा दशरथ मारे खुशी के फूले न समाते थे।

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