कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 35 प्रेमचन्द की कहानियाँ 35प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का पैंतीसवाँ भाग
राजा- बादशाह पर इतना असर हुआ, मुझे तो यही ताज्जुब है!
कप्तान- असर-वसर कुछ नहीं हुआ; यह भी उनकी एक दिल्लगी है। शाम को खास मुसाहबों को बुलाकर आदेश दिया है कि आज मैं भेष बदलकर शहर का गश्त करूँगा; तुम लोग भेष बदले हुए मेरे साथ रहना। मैं देखना चाहता हूं कि रियाया क्यों इतना घबराई हुई है। सब लोग मुझसे दूर रहे; किसी को मालूम न हो कि मैं कौन हूँ। रोशनुद्दौला और पाँचों अँगरेज मुसाहब साथ रहेंगे।
राजा- तुम्हें क्योंकर यह बात मालूम हो गई?
कप्तान- मैंने उसी अँगरेज हज्जाम को मिला रखा है। दरबार में जो कुछ होता है, उसका पता मुझे मिल जाता है। उसी की सिफारिश से आपकी खिदमत में हाजिर होने का मौका मिला। घड़ियाल में दस बजते हैं, ग्यारह बजे चलने की तैयारी है। बारह बजते-बजते लखनऊ का तख्त खाली हो जायगा।
राजा- (घबराकर) क्या इन सबने उन्हें कत्ल करने की साजिश कर रखी है?
कप्तान- जी नहीं; कत्ल करने से उनकी मंशा पूरी न होगी। बादशाह को बाजार की सैर कराते हुए गोमती की तरफ ले जायँगे। वहाँ अँग्ररेज सिपाहियों का एक दस्ता तैयार रहेगा। वह बादशाह को फौरन एक गाड़ी पर बिठाकर रेजिडेंसी में ले जायगा। वहां रेजिडेंट साहब बादशाह सलामत को सल्लतन से इस्तीफा देने पर मजबूर करेंगे। उसी वक्त उनसे इस्तीफा लिखा लिया जायगा, और इसके बाद रातों-रात उन्हें कलकत्ते भेज दिया जायगा।
राजा- बड़ा गजब हो गया। अब तो वक्त बहुत कम है; बादशाह सलामत निकल पड़े होंगे?
कप्तान- गजब क्या हो गया। इनकी जात से किसे आराम था? दूसरी हुकूमत चाहे कितनी ही खराब हो, इससे तो अच्छी ही होगी।
राजा- अँगरेजों की हुकूमत होगी।
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