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प्रेमचन्द की कहानियाँ 36

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :189
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9797
आईएसबीएन :9781613015346

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का छत्तीसवाँ भाग

प्रेमचन्द की सभी कहानियाँ इस संकलन के 46 भागों में सम्मिलित की गईं हैं। यह इस श्रंखला का छत्तीसवाँ भाग है।

अनुक्रम

1. रूहे-हयात (जीवन की प्राण शक्ति)
2. रोशनी
3. लांछन
4. लाग-डाँट
5. लाल फ़ीता
6. लेखक
7. लैला

1. रूहे-हयात (जीवन की प्राण शक्ति)  

मेरे गाँव में गुजराती यतीम लड़की थी। माँ-बाप की सूरत तक इसे याद न थी। गाँव के लडकों के साथ खेलती। कोई मारता तो रोती और फिर खेलने लगती। कोई तरस खाकर कुछ दे देता तो दौड़कर ले लेती। जहाँ नींद आ जाती, वहाँ सो रहती। जहाँ खाने को पाती, वहीं खा लेती। जो कुछ फटे-पुराने चीथड़े मिल जाते, वही पहन लेती। अगर कोई रहम से गोद में उठा लेता तो फूली न समाती थी। मगर वह अपने हमउम्र बच्चों से ज्यादा दबी, उदास या रोती न थी। उसके गदराए हुए बदन पर दूसरी माएं रश्क करती थीं, इसकी मुस्कुराहट दिलों को पिघला देती थी। लोग इसे देखकर खामख्वाह गोद में उठा लेते थे।

जब इसने होश सँभाला तो खेतों में मजदूरी करने लगी। टोकरी सर पर उठाए हुए गाती। खेत निराते हुए हमजोलियों से चुहल करती। सारे गाँव की लौंडी थी, सारे गाँव की दुलारी। किसी के लिए बाजार से सौदा लाती, किसी के धान कूटती, कोई इसे उतारे कपड़े दे देता, कोई फटी-पुरानी साड़ी-वह इसी में मग्न थी। न बैठी हुई बसोरती, न अपने हाल पर आँसू बहाती। किसी के घर गाना उठे, कहीं ढोल की आवाज कानों में आए, सबसे पहले वहाँ जा पहुँचती। इसका दिल मुसर्रत का भूखा था। ज़िंदगी इसके लिए अजीरन, जंजाल, कष्टपूर्ण न थी। यह एक नेमत थी, जिसका वह दिल से लुत्फ उठाती थी। यहाँ तक कि शबाब आ पहुँचा। निगाहों में शोखी नमूदार हुई। जवानी गरदन उठाकर चलने लगी। गाँव वालों को इसकी शादी की फिकर हुई। सयानी लड़की गाँव में कुँवारी कैसे रहे? इसे उनकी ग़ैरत सहन नहीं कर सकती थी। आपस में सलाह हुई। किसी ने अनाज दिया, किसी ने रुपए। वर की तलाश होने लगी।

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