कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 36 प्रेमचन्द की कहानियाँ 36प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का छत्तीसवाँ भाग
खुरशेद- ''तुम तो पागल हो रहे हो। देखते नहीं हो, कमरे में कौन बैठा हुआ है?
किंग ने हकबकाकर जुगनू की तरफ़ देखा और झिझककर बोला- ''यह बुढ़िया यहाँ कब आई। तुम यहाँ क्यों आई बुड्ढी! शैतान की बच्ची! यहाँ भेद लेने आती है। हमको वदनाम करना चाहती है। मैं तेरा गला घोट दूँगा, ठहर भागती कहाँ है, मैं तुझे जिंदा न छोडूँगा।''
जुगनू बिल्ली की तरह कमरे से निकली और सिर पर पाँव रखकर भागी। उधर कमरे से क़हक़हे उठ-उठकर छत को हिलाने लगे।
जुगनू उसी वक्त मिसेज़ टंडन के घर पहुँची। उसके पेट में बुलबुले से उठ रहे थे, पर मिसेज़ टंडन सो गई थीं। वहाँ से निराश होकर उसने कई दूसरे घरों की कुंडी खटखटाई, पर कोई द्वार न खुला और दुखिया को सारी रात इस तरह काटनी पड़ी, मानो कोई रोता हुआ बच्चा गोद में हो। प्रातःकाल वह आश्रम में जा कूदी। कोई आधे घंटे में मिसेज़ टंडन भी आईं। उन्हें देखकर उसने मुँह फेर लिया।
मि. टंडन ने पूछा- ''रात क्या तुम मेरे घर गई थीं। इस वक्त मुझसे महराज ने कहा।''
जुगनू ने विरक्त भाव से कहा- ''प्यासा ही तो कुएँ के पास जाता है। कुँवा थोड़े ही प्यासे के पास आता है। मुझे आग में झोंककर आप दूर हट गई। भगवान् ने रक्षा की, नहीं कल जान ही गई थी।''
मि. टंडन ने उत्सुकता से कहा- ''क्या हुआ क्या, कुछ कहो तो। मुझे तुमने जगा क्यों न लिया। तुम तो जानती हो मेरी आदत सबेरे सो जाने की है।''
''महाराज ने घर में घुसने ही न दिया। जगा कैसे लेती। आपको इतना तो सोचना चाहिए था कि वह वहाँ गई है तो आती होगी। घड़ी-भर बाद ही सोती तो क्या बिगड़ जाता। पर आपको किसी की क्या परवाह!''
''तो क्या हुआ, मिस खुरशेद मारने दौड़ी?''
''वह नहीं मारने दौड़ी, उनका वह खसम है, वह मारने दौड़ा। लाल-लाल आँखें निकाले आया और मुझसे कहा निकल जा। जब तक मैं निकलूँ-निकलूँ तब तक हंटर खींचकर दौड़ ही तो पड़ा। मैं सिर पर पाँव रखकर न भागती तो चमड़ी उधेड़ डालता। और वह रांड बैठी तमाशा देखती रही। दोनों में पहले से सधी-बदी थी। ऐसी कुलटाओं का मुँह देखना पाप है। वेश्या भी इतनी निर्लज्ज न होगी।
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