लोगों की राय

कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 36

प्रेमचन्द की कहानियाँ 36

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :189
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9797
आईएसबीएन :9781613015346

Like this Hindi book 3 पाठकों को प्रिय

297 पाठक हैं

प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का छत्तीसवाँ भाग


खुरशेद- ''वह इस वक्त तुमसे अपना अपराध क्षमा कराने आए हैं। रात वह नशे में थे।''

जुगनू ने मिसेज़ टंडन की ओर देखकर कहा- ''और आप भी तो कुछ कम नशे में नहीं थीं।''

खुरशेद ने व्यंग्य समझकर कहा- मैंने आज तक कभी नहीं पी, मुझ पर झूठा इलजाम मत लगाओ।''

जुगनू ने लाठी मारी- ''शराब से भी बड़ी नशे की चीज़ है कोई, वह उसी का नशा होगा। उन महाशय को पर्दे में क्यों ढँक दिया। देवियाँ भी तो उनकी सूरत देखतीं।''

मिस खुरशेद ने शरारत की- ''सूरत तो उनकी लाख-दो-लाख में एक है।''

मिसेज टंडन ने आशंकित होकर कहा- ''नहीं, उन्हें यहाँ लाने की जरूरत नहीं। आश्रम को हम बदनाम नहीं करना चाहते।''

मिस खुरशेद ने आग्रह किया- ''मुआमले को साफ़ करने के लिए उनका आप लोगों के सामने आना जरूरी है। एकतरफ़ी फ़ैसला आप क्यों करती हैं।''

मिसेज़ टंडन ने टालने के लिए कहा- ''यहाँ कोई मुक़दमा थोड़े ही पेश है।''

मिस खुरशेद- ''वाह! मेरी इज्जत में बट्टा लगा जा रहा है और आप कहती हैं कोई मुकदमा नहीं है।

किंग आएँगे और 'आपको उनका बयान सुनना होगा।'

मिसेज़ टंडन को छोड़कर और सभी महिलाएँ किंग को देखने के लिए उत्सुक थीं। किसी ने विरोध न किया।

खुरशेद ने द्वार पर आकर ऊँची आवाज़ से कहा- ''तुम जरा यहाँ चले आवो।''

हुड खुला और मिस लीलावती रेशमी साड़ी पहने मुसकिराती हुई निकल आई। आश्रम में सन्नाटा छा गया। देवियाँ विस्मित आँखों से लीलावती को देखते लगीं।

जुगनू ने आँखें चमकाकर कहा- उन्हें कहीं छिपा दिया आपने?''

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

विनामूल्य पूर्वावलोकन

Prev
Next
Prev
Next

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book