लोगों की राय

कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 36

प्रेमचन्द की कहानियाँ 36

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :189
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9797
आईएसबीएन :9781613015346

Like this Hindi book 3 पाठकों को प्रिय

297 पाठक हैं

प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का छत्तीसवाँ भाग


हरिविलास ने सकुचाते हुए कहा- ''आप मुझे इस योग्य समझते हैं, यह आपकी कृपा है। पर वास्तव में मैं इस सम्मान का अधिकारी नहीं हूँ। जिस पंचायत के सदस्य ऐसे-ऐसे माननीय लोग हों, उसका प्रधान बनने का साहस मैं नहीं कर सकता।''

करनसिंह- ''बाबू साहब आप अपने मुँह से ऐसा न कहिए। आप पहले एक परगने के हाकिम थे। आज सहस्रों हृदयों पर आपका अधिकार है। क्या छोटे क्या बड़े सब आपको पूज्य समझते हैं। आपको मेरी यह प्रार्थना स्वीकार करनी पड़ेगी।''

हरिविलास इस सम्मान-पद के भार से सिर न उठा सके। करनसिंह ने उठकर फूलों का हार उनके गले में डाल दिया।

इसके बाद करनसिंह एक क्षण तक किसी विचार में डूबे रहे। जान पड़ता था कुछ कहना चाहते हैं पर संकोच के मारे ज़बान नहीं खुलती। अंत में लजाते हुए बोले- ''बाबूजी मेरी एक प्रार्थना तो आपने मान ली, अब मुझे एक दूसरी प्रार्थना करने का साहस हो रहा है। आशा हो तो कहूँ।''

हरिविलास- ''शौक से कहिए मैं सहर्ष आपकी सेवा करूँगा।''

करनसिंह ने जेब से एक बंद लिफ़ाफ़ा निकाला और बोले मैं इसे आपके चरणों पर समर्पण करने की आशा चाहता हूँ। हरिविलास ने दबी हुई आँखों से लिफ़ाफ़े की तरफ़ देखा। लिखा था-

''रेहननामा रामविलास महतो, मौजा बिदोखर।''

उनकी आँखों में एहसान के आँसू भर आए। कुछ कहना चाहते थे, किंतु करनसिंह ने उन्हें बोलने का अवसर न दिया। उसी दम लिफ़ाफ़े को फाड़कर फेंक दिया और लोग चकित हो रहे थे कि क्या माजरा है। हरिबिलास ने उनकी ओर देखकर कहा- ''आप लोगों को मालूम हुआ यह कैसा लिफ़ाफ़ा था। यही दादा का लिखा हुआ रेहननामा था।'' यह कहते-कहते उनका कंठ स्वर रुक गया।

0 0 0

 

6. लेखक

प्रात:काल महाशय प्रवीण ने बीस दफा उबाली हुई चाय का प्याला तैयार किया और बिना शक्कर और दूध के पी गये। यही उनका नाश्ता था। महीनों से मीठी, दूधिया चाय न मिली थी। दूध और शक्कर उनके लिए जीवन के आवश्यक पदार्थों में न थे। घर में गये जरूर, कि पत्नी को जगाकर पैसे माँगें; पर उसे फटे-मैले लिहाफ़ में निद्रा-मग्न देखकर जगाने की इच्छा न हुई। सोचा, शायद मारे सर्दी के बेचारी को रात भर नींद न आयी होगी, इस वक्त जाकर आँख लगी है। कच्ची नींद जगा देना उचित न था। चुपके से चले आये।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

विनामूल्य पूर्वावलोकन

Prev
Next
Prev
Next

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book