कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 36 प्रेमचन्द की कहानियाँ 36प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का छत्तीसवाँ भाग
तेहरान में घर-घर आनंदोत्सव हो रहा था। आज शाहजादा नादिर लैला को ब्याह कर लाया था। बहुत दिनों के बाद उसके दिल की मुराद पूरी हुई थी। सारा तेहरान शाहजादे पर जान देता था और उसकी खुशी में शरीक था। बादशाह ने तो अपनी तरफ से मुनादी करवा दी थी कि इस शुभ अवसर पर धन और समय का अपव्यय न किया जाय, केवल लोग मसजिदों में जमा होकर खुदा से दुआ माँगें कि वर और वधू चिरंजीवी हों और सुख से रहें। लेकिन अपने प्यारे शाहजादे की शादी में धन और धन से अधिक मूल्यवान् समय का मुँह देखना किसी को गवारा न था। रईसों ने महफिलें सजायीं, चिराग जलाये, बाजे बजवाये, गरीबों ने अपनी डफलियाँ सँभालीं और सड़कों पर घूम-घूमकर उछलते-कूदते फिरे।
संध्या के समय शहर के सारे अमीर और रईस शाहजादे को बधाई देने के लिए दीवाने-खास में जमा हुए। शाहजादा इत्रों से महकता, रत्नों से चमकता और मनोल्लास से खिलता हुआ आकर खड़ा हो गया।
काजी ने अर्ज की- हुजूर पर खुदा की बरकत हो।
हजारों आदमियों ने कहा- आमीन!
शहर की ललनाएँ भी लैला को मुबारकबाद देने आयीं। लैला बिलकुल सादे कपड़े पहने थी। आभूषणों का कहीं नाम न था।
एक महिला ने कहा- आपका सोहाग सदा सलामत रहे।
हजारों कंठों से ध्वनि निकली- आमीन!
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