कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 36 प्रेमचन्द की कहानियाँ 36प्रेमचंद
|
3 पाठकों को प्रिय 297 पाठक हैं |
प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का छत्तीसवाँ भाग
रात का समय था। नादिर और लैला आरामगाह में बैठे हुए शतरंज की बाजी खेल रहे थे। कमरे में कोई सजावट न थी, केवल एक जाजिम बिछी हुई थी।
नादिर ने लैला का हाथ पकड़कर कहा- बस, अब यह ज्यादती नहीं, तुम्हारी चाल हो चुकी। यह देखो, तुम्हारा एक प्यादा पिट गया।
लैला- अच्छा यह शह! आपके सारे पैदल रखे रह गये और बादशाह पर शह पड़ गयी। इसी पर दावा था।
नादिर- तुम्हारे साथ हारने में जो मजा है, वह जीतने में नहीं।
लैला- अच्छा, तो गोया आप दिल खुश कर रहे हैं! शह बचाइए, नहीं दूसरी चाल में मात होती है।
नादिर- (अर्दब देकर) अच्छा अब सँभलकर जाना, तुमने मेरे बादशाह की तौहीन की है। एक बार मेरा फर्जी उठा तो तुम्हारे प्यादों का सफाया कर देगा।
लैला- बसंत की भी खबर है! यह शह, लाइए फर्जी अब कहिए। अबकी मैं न मानूँगी, कहे देती हूँ। आपको दो बार छोड़ दिया, अबकी हर्गिज न छोड़ूँगी।
नादिर- जब तक मेरा दिलराम (घोड़ा) है, बादशाह को कोई गम नहीं।
लैला- अच्छा यह शह? लाइए अपने दिलराम को! कहिए, अब तो मात हुई?
नादिर- हाँ जानेमन, अब मात हो गयी। जब मैं ही तुम्हारी अदाओं पर निसार हो गया, तब मेरा बादशाह कब बच सकता था।
लैला- बातें न बनाइए, चुपके से इस फरमान पर दस्तखत कर दीजिए। जैसा आपने वादा किया था।
|