कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 36 प्रेमचन्द की कहानियाँ 36प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का छत्तीसवाँ भाग
लैला ने दीनतापूर्ण नेत्रों से देखकर कहा- जरा ठहर जाइए, पहले इन लोगों से पूछिए कि चाहते क्या हैं।
यह आदेश पाते ही नादिर छत पर चढ़ गया, लैला भी उसके पीछे-पीछे ऊपर आ पहुँची। दोनों अब जनता के सम्मुख आकर खड़े हो गये। मशालों के प्रकाश में लोगों ने इन दोनों को छत पर खड़े देखा, मानो आकाश से देवता उतर आये हों; सहस्रो कंठों से ध्वनि निकली- वह खड़ी है, वह खड़ी है, लैला वह खड़ी है! यह वह जनता थी जो लैला के मधुर संगीत पर मस्त हो जाया करती थी।
नादिर ने उच्च स्वर से विद्रोहियों को सम्बोधित किया- ऐ ईरान की बदनसीब रिआया। तुमने शाही महल को क्यों घेर रखा है? क्यों बगावत का झंडा खड़ा किया है? क्या तुमको मेरा और अपने खुदा का बिलकुल खौफ नहीं? क्या तुम नहीं जानते कि मैं अपनी आँखों के एक इशारे से तुम्हारी हस्ती खाक में मिला सकता हूँ? मैं तुम्हें हुक्म देता हूँ कि एक लम्हे के अंदर यहाँ से चले जाओ, वरना कलामे-पाक की कसम, मैं तुम्हारे खून की नदी बहा दूँगा।
एक आदमी ने, जो विद्रोहियों का नेता मालूम होता था, सामने आकर कहा- हम उस वक्त तक न जायँगे, जब तक शाही महल लैला से खाली न हो जायगा।
नादिर ने बिगड़कर कहा- ओ नाशुक्रो, खुदा से डरो! तुम्हें अपनी मलका की शान में ऐसी बेअदबी करते हुए शर्म नहीं आती! जब से लैला तुम्हारी मलका हुई है, उसने तुम्हारे साथ कितनी रिआयतें की हैं! क्या उन्हें तुम बिलकुल भूल गये? जालिमो, वह मलका है; पर वही खाना खाती है, जो तुम कुत्तों को खिला देते हो; वही कपड़े पहनती है, जो तुम फकीरों को दे देते हो। आकर महलसरा में देखो, तुम इसे अपने झोंपड़ों ही की तरह तकल्लुफ और सजावट से खाली पाओगे। लैला तुम्हारी मलका होकर भी फकीरी की जिंदगी बसर करती है, तुम्हारी खिदमत में हमेशा मस्त रहती है। तुम्हें उसके कदमों की खाक माथे पर लगानी चाहिए, आँखों का सुरमा बनाना चाहिए। ईरान के तख्त पर कभी ऐसी गरीबों पर जान देनेवाली, उनके दर्द में शरीक होने वाली, गरीबों पर अपने को निसार करनेवाली मलका ने कदम नहीं रखे और उसकी शान में तुम ऐसी बेहूदा बातें करते हो! अफसोस! मुझे मालूम हो गया कि तुम जाहिल, इन्सानियत से खाली और कमीने हो! तुम इसी काबिल हो कि तुम्हारी गरदनें कुन्द छुरी से काटी जायँ, तुम्हें पैरों तले रौंदा जाय...
नादिर ने बात भी पूरी न कर पायी थी कि विद्रोहियों ने एक स्वर से चिल्लाकर कहा- लैला, लैला हमारी दुश्मन है, हम उसे अपनी मलका की सूरत में नहीं देख सकते।
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