कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 37 प्रेमचन्द की कहानियाँ 37प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का सैंतीसवाँ भाग
विक्रम ने बिगड़कर कहा, 'तू बड़ी शैतान है कुन्ती, किसने तुझे बुलाया यहाँ?'
कुन्ती ने खुफिया पुलिस की तरह कमरे में नजर दौड़ाकर कहा, 'तुम लोग हरदम यहाँ किवाड़ बन्द किये बैठे क्या बातें किया करते हो? जब देखो,यहीं बैठे हो। न कहीं घूमने जाते हो, न तमाशा देखने; कोई जादू-मन्तर जगाते होंगे!'
विक्रम ने उसकी गरदन पकड़कर हिलाते हुए कहा, 'हाँ एक मन्तर जगा रहे हैं, जिसमें तुझे ऐसा दूल्हा मिले, जो रोज गिनकर पाँच हजार हण्टर जमाये सड़ासड़।'
कुन्ती उसकी पीठ पर बैठकर बोली, 'मैं ऐसे दूल्हे से ब्याह करूँगी, जो मेरे सामने खड़ा पूँछ हिलाता रहेगा। मैं मिठाई के दोने फेंक दूंगी और वह चाटेगा। जरा भी चीं-चपड़ करेगा, तो कान गर्म कर दूंगी। अम्माँ को लॉटरी के रुपये मिलेंगे, तो पचास हजार मुझे दे दें। बस, चैन करूँगी। मैं दोनों वक्त ठाकुरजी से अम्माँ के लिए प्रार्थना करती हूँ। अम्माँ कहती हैं, कुँवारी लड़कियों की दुआ कभी निष्फल नहीं होती। मेरा मन तो कहता है, अम्माँ को जरूर रुपये मिलेंगे।'
मुझे याद आया, एक बार मैं अपने ननिहाल देहात में गया था, तो सूखा पड़ा हुआ था। भादों का महीना आ गया था; मगर पानी की बूँद नहीं। सब लोगों ने चन्दा करके गाँव की सब कुँवारी लड़कियों की दावत की थी।
और उसके तीसरे ही दिन मूसलाधार वर्षा हुई थी। अवश्य ही कुँवारियों की दुआ में असर होता है। मैंने विक्रम को अर्थपूर्ण आँखों से देखा, विक्रम ने मुझे। आँखों ही में हमने सलाह कर ली और निश्चय भी कर लिया।
विक्रम ने कुन्ती से कहा, 'अच्छा, तुझसे एक बात कहें किसी से कहोगी तो नहीं? नहीं, तू तो बड़ी अच्छी लड़की है, किसी से न कहेगी। मैं अबकी तुझे खूब पढ़ाऊँगा और पास करा दूंगा। बात यह है कि हम दोनों ने भी लॉटरी का टिकट लिया है। हम लोगों के लिए भी ईश्वर से प्रार्थना किया कर। अगर हमें रुपये मिले, तो तेरे लिए अच्छे-अच्छे गहने बनवा देंगे। सच!'
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