कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 37 प्रेमचन्द की कहानियाँ 37प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का सैंतीसवाँ भाग
जब इंदिरा बन-सँवरकर तैयार हो जाती है तो दोनों साथ बैठकर कीर्तन करते हैं। आज इस कीर्तन में दोनों के मन में भिन्न-भिन्न भावनाएँ उत्पन्न होती हैं। इंदिरा अनजाने में प्रसन्न है। उसे हरा ही हरा सूझता है। वह संन्यास और वैराग्य से अघा चुकी है और अब सांसारिक वस्तुओं का आनन्द लेना चाहती है। उसके विचार में शाही कृपाएँ उसके लिये समृद्धि का द्वार खोल देंगी। वह इस समय भी उस जीवन का स्वप्न देख रही है जब वह हरिहर के लिए अच्छा खाना पकाएगी, उसके लिए अच्छे-अच्छे कपड़े बनवाएगी, उसके सिर में तेल डालेगी, जब वह सोएगा तो उसके लिए पंखा झलेगी। क्या ऐसा गुणवान, ईश्वर तक पहुँचा हुआ कवि इस योग्य है कि संसार की उपेक्षा का शिकार हो? मगर हरिहर दुःख के विचारों में डूबा हुआ है। उसकी आँखों के समक्ष अंधेरा छा रहा है। इसी समय ज्ञान सिंह अपने साथियों के साथ सवारी लिए आ पहुँचता है।
शाही महल के सुसज्जित और सुरुचिपूर्ण कमरे, रूपवती दासियाँ। राजमाता का दरबार लगा हुआ है। इंदिरा महल में पहुँचकर राजमाता को प्रणाम करती है। रानी उसकी बड़ी आवभगत करती हैं। वे स्नान करके पूजा के लिए तैयार बैठी हैं। इंदिरा उनके साथ मंदिर में जाती है जो काँच की वस्तुओं से सजा हुआ है, और वहाँ उनका कीर्तन होता है। रानी के साथ और भी कई कुलीन महिलाएँ हैं। इंदिरा का कीर्तन सुनकर सब अपना आपा खो बैठती हैं। रानी साहिबा इंदिरा को गले लगा लेती हैं और अपनी मोतियों की माला निकालकर उसके गले में डाल देती हैं। इंदिरा दूसरा भजन गाती है। रानी उसके पाँवों पर सिर रख देती है। उसके हृदय में भगवान् की ऐसी भक्ति कभी न उमड़ी थी। इसी समय पद्मा आती है।
पद्मा रूप में इंदिरा से बिल्कुल अलग है। उसके रूप में रौब, गाम्भीर्य, लावण्य और आकर्षण है। इंदिरा के रूप में मृदुलता और नम्रता। एक चमेली का फूल है - सादा और कोमल, उसका सौन्दर्य उसकी कोमलता और सादगी में है। दूसरा सूरजमुखी है - सुवर्ण और सुदर्शन।
पद्मा का पिता सरदार केसरी सिंह राज्य में मंत्री के पद पर प्रतिष्ठित है। वह पद्मा का विवाह राजकुमार ज्ञान सिंह से करना चाहता है। पद्मा भी राजकुमार को सच्चे दिल से चाहती है मगर राजकुमार उस पर अधिक आसक्त नहीं है, फिर भी उसका बहुत आदर-सत्कार करता है।
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