कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 37 प्रेमचन्द की कहानियाँ 37प्रेमचंद
|
158 पाठक हैं |
प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का सैंतीसवाँ भाग
वृन्दा की आंखों से आंसू जारी हो गए। उसने राजा को गोद में उठा लिया और कलेजे से लगाकर बोली- बेटा, अभी मैं नहीं आयी, फिर कभी आऊँगी।
राजा इसका मतलब न समझा। वह उसका हाथ पकड़कर खींचता हुआ घर की तरफ चला। माँ की ममता वृन्दा को दरवाजे तक ले गयी। मगर चौखट से आगे न ले जा सकी। राजा ने बहुत खींचा मगर वह आगे न बढ़ी। तब राजा की बड़ी-बड़ी आंखों में आँसू भर आये। उसके होठ फैल गये और वह रोने लगा।
प्रेमसिंह उसका रोना सुनकर बाहर निकल आया, देखा तो वृन्दा खड़ी है। चौंककर बोला- वृन्दा। मगर वृन्दा कुछ जबाब न दे सकीं।
प्रेमसिंह ने फिर कहा- बाहर क्यों खड़ी हो, अन्दर आओ। अब तक कहाँ थीं?
वृन्दा ने आंसू पोछते हुए जबाब दिया- मैं अन्दर नहीं आऊँगी।
प्रेमसिंह ने फिर कहा- आओ आओ, अपने बूढ़े बाप की बातों का बुरा न मानों।
वृन्दा- नहीं दादा, मैं अन्दर कदम नहीं रख सकती।
प्रेमसिंह- क्यों?
वृन्दा- कभी बताऊँगी। मैं तुम्हारे पास वह तेगा लेने आयी हूँ।
प्रेमसिंह ने अचरज में जाकर पूछा- उसे लेकर क्या करोगी?
वृन्दा- अपनी बेइज्जती का बदला लूँगी।
प्रेमसिंह- किससे।
|