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प्रेमचन्द की कहानियाँ 38

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :152
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9799
आईएसबीएन :9781613015360

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का अड़तीसवाँ भाग


उस समय बालाजी ने एक परम प्रभावशाली वक्तृता दी जिसका एक-एक शब्द आज तक सुननेवालों के हृदय पर अंकित है और जो भारत-वासियों के लिए सदा दीप का काम करेगी। बालाजी की वक्तृताएं प्राय: सारगर्भित हैं। परन्तु वह प्रतिभा, वह ओज जिससे यह वक्तृता अलंकृत है, उनके किसी व्याख्यान में दीख नहीं पडते। उन्होंने अपने वाक्यों के जादू से थोड़ी ही देर में पण्डों को अहीरों और पासियों से गले मिला दिया। उस वक्तृता के अंतिम शब्द थे -
यदि आप दृढ़ता से कार्य करते जाएंगे तो अवश्य एक दिन आपको अभीष्ट सिद्धि का स्वर्ण स्तम्भ दिखायी देगा। परन्तु धैर्य को कभी हाथ से न जाने देना। दृढ़ता बड़ी प्रबल शक्ति हैं। दृढ़ता पुरुष के सब गुणों का राजा है। दृढ़ता वीरता का एक प्रधान अंग है। इसे कदापि हाथ से न जाने देना। तुम्हारी परीक्षाएं होंगी। ऐसी दशा में दृढ़ता के अतिरिक्त कोई विश्वासपात्र पथ-प्रदर्शक नहीं मिलेगा। दृढ़ता यदि सफल न भी हो सके, तो संसार में अपना नाम छोड़ जाती है।

बालाजी ने घर पहुचंकर समाचार-पत्र खोला, मुख पीला हो गया, और सकरुण हृदय से एक ठण्डी सांस निकल आयी। धर्मसिंह ने घबराकर पूछा- कुशल तो है?

बालाजी- सदिया में नदी का बांध फट गया बस सहस मनुष्य गृहहीन हो गये।

धर्मसिंह- ओ हो।

बालाजी- सहस्रों मनुष्य प्रवाह की भेंट हो गये। सारा नगर नष्ट हो गया। घरों की छतों पर नावें चल रही हैं। भारत सभा के लोग पहुच गये हैं और यथा शक्ति लोगों की रक्षा कर रहे हैं, किन्तु उनकी संख्या बहुत कम है।

धर्मसिंह (सजलनयन होकर)- हे इश्वर। तू ही इन अनाथों का नाथ है।

तीन घण्टे तक निरन्तर मूसलाधार पानी बरसता रहा। सोलह इंच पानी गिरा। नगर के उत्तरी विभाग में सारा नगर एकत्र है। न रहने को गृह है, न खाने को अन्न। शव की राशियां लगी हुई हैं बहुत से लोग भूखे मरे जाते हैं। लोगों के विलाप और करुणक्रन्दन से कलेजा मुंह को आता है। सब उत्पात-पीड़ित मनुष्य बालाजी को बुलाने की रट लगा रहे हैं। उनका विचार यह है कि मेरे पहुंचने से उनके दु:ख दूर हो जायंगे।

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