कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 38 प्रेमचन्द की कहानियाँ 38प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का अड़तीसवाँ भाग
उदयभान ने फिर पूछा- किसके हुक्म से बना रही है?
भुनगी डरते हुए बोली- सब लोग कहने लगे बना लो, तो बना रही हूँ।
उदयभान- मैं अभी इसे फिर खुदवा डालूँगा। यह कह उन्होंने भाड़ में एक ठोकर मारी। गीली मिट्टी सब कुछ लिये दिये बैठ गयी। दूसरी ठोकर नाँद पर चलायी लेकिन बुढ़िया सामने आ गयी और ठोकर उसकी कमर पर पड़ी। अब उसे क्रोध आया। कमर सहलाते हुए बोली- महाराज, तुम्हें आदमी का डर नहीं है तो भगवान् का डर तो होना चाहिए। मुझे इस तरह उजाड़ कर क्या पाओगे? क्या इस चार अंगुल धरती में सोना निकल आयेगा? मैं तुम्हारे ही भले की कहती हूँ, दीन की हाय मत लो। मेरा रोआँ दुखी मत करो।
उदयभान- अब तो यहाँ फिर भाड़ न बनायेगी।
भुनगी- भाड़ न बनाऊँगी तो खाऊँगी क्या?
उदयभान- तेरे पेट का हमने ठेका नहीं लिया है।
भुनगी- टहल तो तुम्हारी करती हूँ खाने कहाँ जाऊँ?
उदयभान- गाँव में रहोगी तो टहल करनी पड़ेगी।
भुनगी- टहल तो तभी करूँगी जब भाड़ बनाऊँगी। गाँव में रहने के नाते टहल नहीं कर सकती।
उदयभान- तो छोड़ कर निकल जा।
भुनगी- क्यों छोड़ कर निकल जाऊँ। बारह साल खेत जोतने से असामी काश्तकार हो जाता है। मैं तो इस झोंपड़े में बूढ़ी हो गयी। मेरे सास-ससुर और उनके बाप-दादे इसी झोंपड़े में रहे। अब इसे यमराज को छोड़ कर और कोई मुझसे नहीं ले सकता।
उदयभान- अच्छा तो अब कानून भी बघारने लगी। हाथ-पैर पड़ती तो चाहे मैं रहने भी देता, लेकिन अब तुझे निकाल कर तभी दम लूँगा। (चपरासियों से) अभी जा कर उसके पत्तियों के ढेर में आग लगा दो, देखें कैसे भाड़ बनता है।
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