कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 39 प्रेमचन्द की कहानियाँ 39प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का उन्तालीसवाँ भाग
चार ही बजे मेहमान लोग आने लगे। नगर के बड़े-बड़े अधिकारी, बड़े-बड़े व्यापारी, बड़े-बड़े विद्वान, समाचार-पत्रों के सम्पादक, अपनी-अपनी महिलाओं के साथ आने लगे। मिस जोशी ने आज अपने अच्छे-से-अच्छे वस्त्र और आभूषण निकाले हुए थे, जिधर निकल जाती थी मालूम होता था, अरुण प्रकाश की छटा चली आ रही है। भवन में चारों ओर सुगंध की लपटें आ रही थीं और मधुर संगीत की ध्वनि हवा में गूंज रही थी।
पांच बजते-बजते मिस्टर जौहरी आ पहुंचे और मिस जोशी से हाथ मिलाते हुए मुस्करा कर बोले- जी चाहता है तुम्हारे हाथ चूम लूं। अब मुझे विश्वास हो गया कि यह महाशय तुम्हारे पंजे से नहीं निकल सकते।
मिसेज पेटिट बोलीं- मिस जोशी दिलों का शिकार करने के लिए ही बनाई गई है।
मिस्टर सोराब जी- मैंने सुना है, आपटे बिलकुल गंवार-सा आदमी है।
मिस्टर भरुचा- किसी यूनिवर्सिटी में शिक्षा ही नहीं पायी, सभ्यता कहां से आती?
मिस्टर भरुचा- आज उसे खूब बनाना चाहिए।
महंत वीरभद्र दाढ़ी के भीतर से बोले- मैंने सुना है नास्तिक है। वर्णाश्रम धर्म का पालन नहीं करता।
मिस जोशी- नास्तिक तो मैं भी हूं। ईश्वर पर मेरा भी विश्वास नहीं है।
महंत- आप नास्तिक हों, पर आप कितने ही नास्तिकों को आस्तिक बना देती हैं।
मिस्टर जौहरी- आपने लाख की बात की कहीं मंहत जी!
मिसेज भरुचा- क्यों महंत जी, आपको मिस जोशी ही ने आस्तिक बनाया है क्या?
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