कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 39 प्रेमचन्द की कहानियाँ 39प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का उन्तालीसवाँ भाग
कोतवाल ने घोड़े से उतरकर, छडी से बूट को खटखटाते हुए कहा- ''इस समय मुझे खातिर मयारत से मुआफी दीजिए, मैं एक सरकारी काम से आया हूँ। आपसे मेरी पुरानी मुलाक़ात है, लेकिन जनाब, सरकारी फ़र्ज़ का क्या करूँ? बाबू दयानाथ हैं?''
जानकीनाथ काँपते हुए बोले- ''जी हाँ, होंगे तो, अभी कचहरी से आए हैं। (धीरे से) परमात्मा की मर्जी होगी तो चंद महीनों में सरकारी वक़ील हुए जाते हैं। जज साहब ने मुझसे वादा फ़रमाया है।''
पर कोतवाल इस धमकी में नहीं आया। हाँ, मु. जानकीनाथ के आंतरिक भाव को ताड़ गया। बोला- ''तो जरा उनको बुला लीजिए, उनका बयान लिखना है।'' यह कहकर उसने एक नोट-बुक और फाउंटेनपेन निकाली। जानकीनाथ का रक्त ठंडा हो गया। बोले- ''कोई खास काम है?''
कोतवाल- ''जी हाँ, खास काम है। आज लोगों ने 'होमरूल' का बड़े ज़ोर-शोर के साथ जलसा किया है। गवर्नमेंट के खिलाफ खूब ग़लतबयानियाँ की गई हैं। बाबू दयानाथ उसके सेक्रेटरी मुकर्रर हुए हैं। उनसे हाज़िरीने-जलसा के नाम दरियाफ्त करना है और एक दोस्ताना सलाह भी देनी है कि होशियार हो जाएँ। ऐसा न हो कि हमको उनके साथ जाब्ते का बर्ताव करना पड़े।''
जानकीनाथ के पैरों-तले से जमीन निकल गई। दौड़े हुए भीतर गए और दयानाथ से सरोष बोले- ''यह तुमने क्या आग लगा रखी है जी? देखो तो, दरवाजे पर कोतवाल खड़े क्या कह रहे हैं? तुम्हारी बदौलत जो कभी न हुआ था, वह आज हो गया।''
दयानाथ बाहर आए। कोतवाल ने उनकी तरफ़ तीव्र नेत्रों से देखा और बोला- ''आप आज होमरूल जलसे में थे?''
''जी हाँ, था।''
''आप उसके सेक्रेटरी हुए हैं?''
'जी हाँ।''
''जलसे में कौन-कौन आदमी मौजूद थे?''
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