कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 39 प्रेमचन्द की कहानियाँ 39प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का उन्तालीसवाँ भाग
तपेश्वरी तो दो-चार दिन में बिदा हो गयी। रामेश्वरराय पर वज्रपात सा हो गया। बुढ़ापे में मजदूरी करनी पड़ी। मान-मर्यादा से हाथ धोया। रोटियों के लाले पड़ गये। बाप-बेटे दोनों प्रातःकाल से संध्या तक मजदूरी करते, तब कहीं आग जलती। दोनों में बहुधा तकरार हो जाती। रामेश्वर सारा अपराध बेटे के सिर रखता। जागेश्वर कहता, आपने मुझे रोका होता तो मैं क्यों इस विपत्ति में फँसता। उधर विश्वेश्वरराय ने महाजनों को उकसा दिया। साल भी न गुजरने पाया था कि बेचारे निराधार हो गये–जमीन निकल गयी, घर नीलाम हो गया, दस-बीस पेड़ थे, वे भी नीलाम हो गये। दुबेजी चौबे जी न बने, दरिद्र हो गये। इस पर विश्वेश्वरराय के ताने और भी गजब ढाते। यह विपत्ति का सबसे नोकदार काँटा था, आतंक का सबसे निर्दय आघात था।
दो साल तक इस दुःखी परिवार ने जितनी मुसीबतें झेलीं, यह उन्हीं का दिल जानता है। कभी पेट भर भोजन न मिला। हाँ, इतनी आन थी कि नीयत नहीं बदली। दरिद्रता ने सब कुछ किया, पर आत्मा का पतन न कर सकी। कुलमर्यादा में आत्मरक्षा की बड़ी शक्ति होती है।
एक दिन संध्या-समय दोनों आदमी बैठे आग ताप रहे थे कि सहसा एक आदमी ने आ कर कहा– ठाकुर, चलो, विश्वेश्वरराय तुम्हें बुलाते हैं।
रामेश्वर ने उदासीन भाव से कहा– मुझे क्यों बुलायेंगे? मैं उनका कौन होता हूँ? क्या कोई उपद्रव खड़ा करना चाहते हैं?
इतने में दूसरा आदमी दौड़ा आकर बोला– ठाकुर, जल्दी चलो, विश्वेश्वरराय की दशा अच्छी नहीं है।
विश्वेश्वरराय को इधर कई दिनों से खाँसी बुखार की शिकायत थी; लेकिन शत्रुओं के विषय में हमें किसी अनिष्ट की शंका नहीं होती। रामेश्वर और जागेश्वर कभी कुशल समाचार पूछने भी न गये। कहते, उन्हें क्या हुआ है। अमीरों को धन का रोग होता है। जब आराम करने को जी चाहा; पलंग पर लेट रहे, दूध में साबूदाना उबालकर मिश्री मिला कर खाया और फिर उठ बैठे। विश्वेश्वरराय की दशा अच्छी नहीं है, यह सुनकर भी दोनों जगह से न हिले। रामेश्वर ने कहा– दशा को क्या हुआ है। आराम से पड़े बातें तो कर रहे हैं।
जागे०– किसी बैद-हकीम को बुलाने भेजना चाहते होंगे। शायद बुखार तेज हो गया हो।
रामे०– यहाँ किसे इतनी फुरसत है। सारा गाँव तो उनका हितू है, जिसे चाहें भेज दें।
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