कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 42 प्रेमचन्द की कहानियाँ 42प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का बयालीसवाँ भाग
मुलिया बोली- 'भाग में तो वह लिखे थे; तुम कैसे मिलते? '
राजा ने मन में समझा- 'बस, अब मार लिया है। बोला, 'विधि ने यही तो भूल की।'
मुलिया मुस्कराकर बोली- 'अपनी भूल तो वही सुधरेगा। राजा निहाल हो गया।'
तीज के दिन कल्लू मुलिया के लिए लट्ठे की साड़ी लाया। चाहता तो था कोई अच्छी साड़ी ले; पर रुपये न थे और बजाज ने उधार न माना।
राजा भी उसी दिन अपने भाग्य की परीक्षा करना चाहता था। एक सुन्दर चुंदरी लाकर मुलिया को भेंट की।
मुलिया ने कहा- 'मेरे लिए तो साड़ी आ गयी है।'
राजा बोला- 'मैंने देखी है। तभी तो मैं इसे लाया। तुम्हारे लायक नहीं है। भैया को किफायत भी सूझती है, तो ऐसी बातों में।'
मुलिया कटाक्ष करके बोली- 'तुम समझा क्यों नहीं देते?'
राजा पर एक कुल्हड़ का नशा चढ़ गया। बोला- 'बूढ़ा तोता नहीं पढ़ता है।'
मुलिया -'मुझे तो लट्ठे की साड़ी ही पसन्द है।'
राजा- 'ज़रा यह चुंदरी पहनकर देखो, कैसी खिलती है।'
मुलिया- 'ज़ो लट्ठा पहनाकर खुश होता है, वह चुंदरी पहन लेने से खुश न होगा। उन्हें चुंदरी पसन्द होती, तो चुंदरी ही लाते।'
राजा- 'उन्हें दिखाने का काम नहीं है?'
मुलिया विस्मय से बोली- 'मैं क्या उनसे बिना पूछे ले लूँगी?'
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