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प्रेमचन्द की कहानियाँ 42

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :156
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9803
आईएसबीएन :9781613015407

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का बयालीसवाँ भाग


मुलिया बोली- 'भाग में तो वह लिखे थे; तुम कैसे मिलते? '

राजा ने मन में समझा- 'बस, अब मार लिया है। बोला, 'विधि ने यही तो भूल की।'

मुलिया मुस्कराकर बोली- 'अपनी भूल तो वही सुधरेगा। राजा निहाल हो गया।'

तीज के दिन कल्लू मुलिया के लिए लट्ठे की साड़ी लाया। चाहता तो था कोई अच्छी साड़ी ले; पर रुपये न थे और बजाज ने उधार न माना।

राजा भी उसी दिन अपने भाग्य की परीक्षा करना चाहता था। एक सुन्दर चुंदरी लाकर मुलिया को भेंट की।

मुलिया ने कहा- 'मेरे लिए तो साड़ी आ गयी है।'

राजा बोला- 'मैंने देखी है। तभी तो मैं इसे लाया। तुम्हारे लायक नहीं है। भैया को किफायत भी सूझती है, तो ऐसी बातों में।'

मुलिया कटाक्ष करके बोली- 'तुम समझा क्यों नहीं देते?'

राजा पर एक कुल्हड़ का नशा चढ़ गया। बोला- 'बूढ़ा तोता नहीं पढ़ता है।'

मुलिया -'मुझे तो लट्ठे की साड़ी ही पसन्द है।'

राजा- 'ज़रा यह चुंदरी पहनकर देखो, कैसी खिलती है।'

मुलिया- 'ज़ो लट्ठा पहनाकर खुश होता है, वह चुंदरी पहन लेने से खुश न होगा। उन्हें चुंदरी पसन्द होती, तो चुंदरी ही लाते।'

राजा- 'उन्हें दिखाने का काम नहीं है?'

मुलिया विस्मय से बोली- 'मैं क्या उनसे बिना पूछे ले लूँगी?'

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