कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 42 प्रेमचन्द की कहानियाँ 42प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का बयालीसवाँ भाग
सेठ- महाराज, जब तक शहर-भर के आदमियों की पंचायत न हो जाय, तब तक हम इसका बीमा कैसे ले सकते हैं। काँग्रेसवालों ने कहीं लूट मचवा दी, तो कौन हमारी मदद करेगा? आप उठिए, भोजन पाइए, हम कल पंचायत करके आपकी सेवा में जैसा कुछ होगा, हाल देंगे।
मोटेराम- तो फिर पंचायत करके आना।
डेपुटेशन जब निराश होकर लौटने लगा, तो पंडितजी ने कहा- किसी के पास सुँघनी तो नहीं है?
एक महाशय ने डिबिया निकालकर दे दी।
लोगों के जाने के बाद मोटेराम ने पुलिसवालों से पूछा- तुम यहाँ क्यों खड़े हो?
सिपाहियों ने कहा- साहब का हुक्म है, क्या करें?
मोटेराम- यहाँ से चले जाओ।
सिपाही- आपके कहने से चले जायँ? कल नौकरी छूट जाएगी, तो आप खाने को देंगे?
मोटेराम- हम कहते हैं, चले जाओ; नहीं तो हम ही यहाँ से चले जायँगे। हम कोई कैदी हैं, जो तुम घेरे खड़े हो?
सिपाही- चले क्या जाइएगा, मजाल है।
मोटेराम- मजाल क्यों नहीं है बे! कोई जुर्म किया है?
सिपाही- अच्छा, जाओ तो देखें?
पंडितजी- ब्रह्म-तेज में आकर उठे और एक सिपाही को इतनी जोर से धक्का दिया कि वह कई कदम पर जा गिरा। दूसरे सिपाहियों की हिम्मत छूट गयी। पंडितजी को उन सबने थुल-थुल समझ लिया था, पराक्रम देखा, तो चुपके से सटक गये।
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