कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 42 प्रेमचन्द की कहानियाँ 42प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का बयालीसवाँ भाग
यह कहती हुई वह तो कोठरी में गई। इधर दोनों मित्रों में मल्लयुद्ध होने लगा।
मोटे.- ''हड्डी तोड़ डालूँगा।''
चिंता.- ''खोद के गाड़ दूँगा।''
मोटे.- '' पीस डालूँगा।''
चिंता.- ''चटनी बना दूँगा।''
मोटे.- ''पेट फाड़ दूँगा।''
चिंता.- ''नाक तोड़ दूँगा।''
दोनों मित्र ज़मीन पर पड़े हुए अपनी-अपनी वाणी की वीरता दिखा रहे थे। और सोना ग्राहकों का रजिस्टर लिए चिंतामणि को दिखा रही थी। चिंतामणि ने देखा 48० अंतिम संख्या थी। बोले- ''क्यों मित्र हमसे उड़ते थे। कहो तो इसी बात पर गर्दन नापूँ।''
मोटे.- ''यह स्त्री मेरे पूर्व जन्मों का सूचित पाप है, बस कुछ नहीं। अब छोड़ दो। तुमने सब देख लिया। अब हमारी लाज तुम्हारे हाथ है। किसी से कहना मत।''
चिंता.- ''नहीं मित्र, क्या मैं ऐसा मूर्ख हूँ लेकिन एक बात अवश्य कहूँगा। पत्रिका पर मेरा नाम भी डालना पड़ेगा। हम और तुम दोनों संपादक होंगे। तुम अपना नाम चाहे ऊपर ही रखो, पर मेरा नाम भी नीचे दो। बोलो स्वीकार है?''
मोटेराम ने गंभीर भाव से कहा-हाँ, स्वीकार है!
2. सगे-लैला (लैला का कुत्ता)
मिस लैला ने अपने आशिक-ज़ार मिस्टर बारटन से कहा- ''आज की चाँदनी रात कैसी सुहानी है।''
बारटन ने किसी कदर शायराना नसरफ़ के साथ जवाब दिया- ''हाँ, ऐसा मालूम होता है कि आफ़ताब मुँह पर एक सुनहरी नकाब डाले है।''
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