कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 42 प्रेमचन्द की कहानियाँ 42प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का बयालीसवाँ भाग
एक रोज बारटन अपने कमरे में बैठा हुआ था कि मिस लैला का खानसामा दौड़ा हुआ आया और कहने लगा- ''मिस्टर बारटन जरा बाहर आइए, आपको एक तमाशा दिखाऊँ। लार्ड हरबर्ट की सूरत इस वक्त देखने के काबिल है।''
बारटन- ''क्यों? बात क्या है? हरबर्ट को क्या हो गया? ''
खानसामा (हँसकर)- ''आपके कुत्ते ने उनका क़ाफ़िया तंग कर रखा है। ये हज़रत कुत्तों से डरते बहुत हैं। मैं इन्हें बचपन से जानता हूँ। कुत्तों की सूरत देखी और कँपकँपी आ गई। इस वक्त आपका राबिन चुपचाप चला आता था।''
लार्ड साहब इसे देखते ही भागे। भागना था कि राबिन ने देख लिया और पीछे पड़ गया। एक घुड़दौड़-सी हो गई। आगे-आगे जाते-शरीफ़ (महापुरुष), परेशान चेहरा फक्र, बदहवास। भागते जाते हैं, पीछे-पीछे कुत्ता गुर्राता हुआ तेजी से दौड़ता चला जाता है। डर के मारे अब गिरे, जब गिरे। खैरियत हुई कि सामने एक दरख्त मिल गया। फिर क्या था। आप बड़ी फुर्ती से उस दरख्त पर चढ़ गए। चलकर जरा आप उनकी हालत तो देखिए।''
बारटन को इस वक्त बड़ी खुशी हुई, जो अपने रक़ीब की जिल्लत पर हर इंसान के दिल में हुआ करती है। बाहर आए और लपके हुए बाग में जा पहुँचे। देखते क्या हैं कि लार्ड हरबर्ट दौनों हाथों से एक ठूँठ पकड़े दरख्त (पेड़) से चिपके बैठे हैं और राबिन ऊपर सर उठाये उन्हें नीचे ललकार-ललकारकर इशारा कर रहा है।
''यह क्या आसमान पर जा बैठे। दम-खम हो तो आ जाओ नीचे।'' अपनी पुरखुरोश (कोलाहलपूर्ण) आवाज़ में राबिन इन्हीं ख्यालात की तस्वीर खींच रहा था।
बारटन को देखना था कि लार्ड साहब भर्राई हुई आवाज़ में चीख कर बोले- ''बारटन। इस ज़ालिम को किसी तरह यहाँ से दूर करो। तुमने अच्छा जानवर पाल रखा है। अगर मैं इस दरख्त पर न चढ़ जाता तो इसने मेरी टाँग पकड़ ली होती। इसे जल्द यहाँ से दूर करो। खुदा के लिए मुझ पर यह करम करो।''
बारटन (हँस कर)- ''आप नाहक इससे डरते हैं। यह गरीब कभी किसी को नहीं काटता। बच्चे तो इससे खेला करते हैं।''
हरबर्ट (लजाजत से)- ''भाई जान, बातें न बनाओ। मेरी रूह फ़ना हुई जाती है। (दवी ज़बान से) और तुम्हें दिल्लगी सूझी हुई है।''
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