कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 43 प्रेमचन्द की कहानियाँ 43प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का तैंतालीसवाँ भाग
प्रेमचन्द की सभी कहानियाँ इस संकलन के 46 भागों में सम्मिलित की गईं हैं। यह इस श्रंखला का तैंतालीसवाँ भाग है।
अनुक्रम
1. सद्गति
2. सभ्यता का रहस्य
3. समर-यात्रा
4. समस्या
5. सवा सेर गेहूँ
6. सांसारिक प्रेम और देश प्रेम
7. सिर्फ़ एक आवाज़
1. सद्गति
दुखी चमार द्वार पर झाडू लगा रहा था और उसकी पत्नी झुरिया, घर को गोबर से लीप रही थी। दोनों अपने-अपने काम से फुर्सत पा चुके थे, तो चमारिन ने कहा, 'तो जाके पंडित बाबा से कह आओ न। ऐसा न हो कहीं चले जायँ।'
दुखी- 'हाँ जाता हूँ, लेकिन यह तो सोच, बैठेंगे किस चीज पर?'
झुरिया- ' क़हीं से खटिया न मिल जायगी? ठकुराने से माँग लाना।'
दुखी- 'तू तो कभी-कभी ऐसी बात कह देती है कि देह जल जाती है। ठकुरानेवाले मुझे खटिया देंगे! आग तक तो घर से निकलती नहीं, खटिया देंगे! कैथाने में जाकर एक लोटा पानी माँगूँ तो न मिले। भला खटिया कौन देगा! हमारे उपले, सेंठे, भूसा, लकड़ी थोड़े ही हैं कि जो चाहे उठा ले जायँ। ले अपनी खटोली धोकर रख दे। गरमी के तो दिन हैं। उनके आते-आते सूख जायगी।'
झुरिया- 'वह हमारी खटोली पर बैठेंगे नहीं। देखते नहीं कितने नेम-धरम से रहते हैं।'
दुखी ने जरा चिंतित होकर कहा, 'हाँ, यह बात तो है। महुए के पत्ते तोड़कर एक पत्तल बना लूँ तो ठीक हो जाय। पत्तल में बड़े-बड़े आदमी खाते हैं। वह पवित्तर है। ला तो डंडा, पत्ते तोड़ लूँ।'
झुरिया- 'पत्तल मैं बना लूँगी, तुम जाओ। लेकिन हाँ, उन्हें सीधा भी तो देना होगा। अपनी थाली में रख दूँ?'
दुखी- 'क़हीं ऐसा गजब न करना, नहीं तो सीधा भी जाय और थाली भी फूटे! बाबा थाली उठाकर पटक देंगे। उनको बड़ी जल्दी विरोध चढ़ आता है। किरोध में पंडिताइन तक को छोड़ते नहीं, लड़के को ऐसा पीटा कि आज तक टूटा हाथ लिये फिरता है। पत्तल में सीधा भी देना, हाँ। मुदा तू छूना मत।'
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