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प्रेमचन्द की कहानियाँ 44

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :179
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9805
आईएसबीएन :9781613015421

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का चौवालीसवाँ भाग


सुभद्रा ने कपड़ों को मेज पर रख कर कहा- आपको धोखा दिया गया है।

युवती ने घबरा कर पूछा- धोखा? कैसा धोखा? मैं बिलकुल नहीं समझती। तुम्हारा मतलब क्या है?

सुभद्रा ने संकोच के आवरण को हटाने की चेष्टा करते हुए कहा- केशव तुम्हें धोखा देकर तुमसे विवाह करना चाहता है।

‘केशव ऐसा आदमी नहीं है, जो किसी को धोखा दे। क्या तुम केशव को जानती हो?

‘केशव ने तुमसे अपने विषय में सब-कुछ कह दिया है?’

‘सब-कुछ।’

‘मेरा तो यही विचार है कि उन्होंने एक बात भी नहीं छिपाई?’

‘तुम्हें मालूम है कि उसका विवाह हो चुका है?’

युवती की मुख-ज्योति कुछ मलिन पड़ गयी, उसकी गर्दन लज्जा से झुक गयी। अटक-अटक कर बोली- हाँ, उन्होंने मुझसे..... यह बात कही थी।

सुभद्रा परास्त हो गयी। घृणा-सूचक नेत्रों से देखती हुई बोली- यह जानते हुए भी तुम केशव से विवाह करने पर तैयार हो।

युवती ने अभिमान से देखकर कहा- तुमने केशव को देखा है?

‘नहीं, मैंने उन्हें कभी नहीं देखा।’

‘फिर, तुम उन्हें कैसे जानती हो?’

‘मेरे एक मित्र ने मुझसे यह बात कही हे, वह केशव को जानता है।’

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