लोगों की राय

कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 45

प्रेमचन्द की कहानियाँ 45

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :136
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9806
आईएसबीएन :9781613015438

Like this Hindi book 3 पाठकों को प्रिय

239 पाठक हैं

प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का पैंतालीसवाँ भाग

7. स्वप्न

औरों की तो मैं नहीं जानता, पर मुझे तो जो आनंद और सुख मिलता है वह स्वप्न में; वहीं पहुँच कर मैं दिल खोलकर हँसता हूँ दिल खोलकर रोता हूँ और दिल खोलकर खेलता हूँ। वहीं मेरा सुनहरा, रत्नजटित महल है, वहीं मेरी कामनाओं के फूल खिलते हैं, वहीं मेरी जबान अपनी होती है, मेरा क़लम अपना होता है, मेरे विचार अपने होते हैं। मेरा वह संसार इस बंधन और कानून के संसार से कहीं ज्यादा प्रत्यक्ष, कहीं ज्यादा शांतिमय और कहीं ज्यादा स्फूर्तिप्रद है। वह तन्मयता, वह अनुराग, वह उत्कर्ष, वह जागृति जिसका मैं वहाँ अनुभव करता हूँ यहाँ कहाँ? रोना यही है कि वैसे स्वप्न बहुत कम दिखाई देते हैं! लोग किसी अच्छे आदमी का मुँह देखकर उठना चाहते हैं। मैं किसी अच्छे आदमी का मुँह देखकर सोना चाहता हूँ।

मालूम नहीं कल किस भाग्यवान का मुँह देखकर सोया था कि लेटते-ही-लेटते अपने स्वप्न साम्राज्य में जा पहुँचा। क्या देखता हूँ कि मेरा बालपन लौट आया है, एक बार फिर मैं आज़ादी की हवा में दौड़ता फिरता हूँ। मेरी वह स्नेहमयी माता, वह प्यारी बहन, वह बाल सखा, वह छोटा-सा घर, वह द्वार पर नीम का वृक्ष-सब कुछ आँखों के सामने आ गया। उस उमंग, उस उत्साह को क्या लिखूँ वह तो वर्णनातीत है, कल्पनातीत है! मुझे खूब याद था कि अभी थोड़ी देर पहले मैं बूढ़ा था। मुझे स्वयं अपनी काया पलटने पर आश्चर्य हो रहा था! मुझे अपनी प्रौढ़ावस्था की सारी बातें याद थीं-जीवन-भर की भूलों, अनुपायों, निराशाओं और विफलताओं की याद ने मेरे बालपन को दुर्लभ बना दिया था। प्रौढ़ता भी थी, औधत्य भी; उमंग भी था, संयम भी; गंभीरता भी थी, चंचलता भी। पेड़ों पर चढ़ता हूँ पर इस तरह कि गिर न पडूँ चीज़ों के लिए जिद भी करता हूँ पर इस तरह नहीं कि रो-रोकर दुनिया सिर पर उठा लूँ, खेलता हूँ तो इस तरह कि चोट न लगे, स्कूल में झूठे बहाने नहीं करता, चुगली नहीं खाता, काम से जी नहीं चुराता, जिन ग़लतियों से मेरा जीवन असफल हो गया था, उन्हें दुहरा कर इस दूसरे जीवन को भी असफल नहीं करना चाहता।

स्वप्न ही में यह शक्ति है कि वह महीनों, वर्षों और युगों को क्षणों में घटित कर दे और काल का भ्रम ज्यों-का-त्यों बना रहे। मैंने देखा कि मैं स्कूल से कॉलेज में जा पहुँचा हूँ। कॉलेज नहीं है, लड़के भी नहीं, लेकिन अब मेरा किसी से द्वेष नहीं। मुझे याद है कि जिन लोगों को तुच्छ समझता था वे मुझसे कहीं आगे निकल गए। अब मैं किसी की निंदा नहीं करता था। याद था कि अध्यापकों के लेक्चर देते समय मैं उपन्यास पढ़ा करता था, खेल के समय बाजार की सैर किया करता था। वही गलतियाँ क्या फिर कर सकता था? वह उपन्यास प्रेम, हृदय का शून्य बन गया, वह बाजार की सैर पाँव की बेड़ी बन गई। अब मैं सभी काम अपने वक्त पर करता था। वह फ़ैशन की गुलामी, वह ट्राई और कालर का शौक, वह नए-नए सूटों का उन्माद, वह हज़ारों बातें जिनका व्यसन हमारे छात्र-जीवन को दूषित कर देता है, इनमें से मुझे अब किसी चीज़ का भी शौक न था। एक पूरे जीवन के अनुभव अब मेरी रक्षा कर रहे थे। वही मैं जिसके लिए हाकी स्टिक नंगी तलवार थी, और फुटबाल बम का गोला, अब बड़े उत्साह से इन खेलों में शरीक होने लगा। व्यायाम से उदासीन रहकर मुझे जो पापड़ बेलने पड़े वह खूब याद थे।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

विनामूल्य पूर्वावलोकन

Prev
Next
Prev
Next

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book