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प्रेमचन्द की कहानियाँ 45

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :136
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9806
आईएसबीएन :9781613015438

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का पैंतालीसवाँ भाग


रुस्तम खान ने अफीम का एक घूँट पिया और मुँह बनाते हुए बोले, ‘पता चल जाए तो मैं उस भागवान को डब्बे में बंद कर लूँ और रोज दर्शन किया करूँ।’

कारे सिंह ने भाँग का एक बड़ा सा गोला बनाया और उसे हाथों से तोलकर सन्तोष भरे स्वर में बोले, ‘ऐसे दो-एक आदमी रोज आते रहें तो क्यों परचूनिये, ग्वाले और कोठी वाले की लताड़ सहनी पड़े।’

आज सेशन जज ने एक बहुचर्चित मुकदमे का फैसला सुनाया था और एक धनी परिवार की विधवा को दो साल की सजा दी थी। पता नहीं मुकदमे की असलियत क्या थी। जनता की आवाज कुछ कहती थी, मुकदमे का फैसला कुछ। लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि कुछ हुस्नो इश्क और ईर्ष्या-वैमनस्य का मामला था। जेल दारोगा, वार्डन और डाक्टर फूले नहीं समा रहे थे। आज उनके हाथ एक सोने की चिड़िया लग गई थी। उसी के चरणों का प्रताप था कि आज कहीं भाँग के गोले थे, कहीं अफीम की चुस्कियाँ और कहीं उम्दा शराब के दौर।

तीन दिन बीत गये। रात के दस बजे का समय था। इलाहाबाद जेल के दरवाजे पर बिजली की लालटेन जल रही थी। कारे सिंह और रुस्तम खान वर्दी पहने, संगीनें चढ़ाए पहरे पर थे।

रुस्तम खान ने बन्दूक पटककर कहा, ‘इस नौकरी से नाक में दम आ गया। यह मजे की मीठी नींद का समय है या खड़े-खड़े कवायद करने का।’

कारे सिंह का ध्यान किसी दूसरी तरफ था, कान में बात न पड़ी। अचानक रुस्तम खान के पास जाकर बहुत भेद भरे स्वर से बोले, ‘यार, तुमसे एक बात कहूँ? पेट के हल्के तो नहीं हो, जान जोखिम में है।’

रुस्तम खान ने आश्वस्त करते हुए पूछा, ‘क्या मुझ पर भी भरोसा नहीं है, आजमाकर देखो।’

कारे सिंह को विश्वास हो गया। बोले, ‘तीन दिन से रोज इसी समय जेल के अंदर से कोई मेरे पास कागज के टुकड़े फेंकता है। एक ठीकरे में लिपटा हुआ बस मेरे सामने ही आकर गिरता है और मजमून सबका एक। यह देखो।’

रुस्तम खान ने आश्चर्यमिश्रित उत्सुकता के साथ टुकड़ों को लिया और बहुत धीरे-धीरे पढ़ने लगा - ‘ठाकुर कारे सिंह को हरनाम देवी का बहुत-बहुत प्यार। यदि बीस हजार नकद, पाँच हजार के गहने और एक प्यार-भरा दिल लेना हो तो मुझे यहाँ से किसी तरह निकालो। बस, जिन्दगी की आस तुम्हीं से है।’

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