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प्रेमचन्द की कहानियाँ 46

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :170
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9807
आईएसबीएन :9781613015445

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का सैंतालीसवाँ अन्तिम भाग


‘वाह, और तुम्हारी अम्मां रोती होंगी कि मेरे लाड़ले पर न जाने क्या गुजरी?’ यह कहकर मिस्टर जैक्सन ने मुझे झट उठाकर कंधे पर बिठा लिया और इस तरह बेधड़क पानी में घुसे कि जैसे सूखी जमीन है। मैं दोनों हाथों से उनकी गरदन पकड़े हूँ, फिर भी सीना धड़क रहा है और रगों में सनसनी-सी मालूम हो रही है। मगर जैक्सन साहब इत्मीनान से चले जा रहे हैं। पानी घुटने तक आया, फिर कमर तक पहुँचा, ओफ्फोह सीने तक पहुँच गया। अब साहब को एक-एक कदम मुश्किल हो रहा है। मेरी जान निकल रही है। लहरें उनके गले लिपट रही हैं मेरे पांव भी चूमने लगीं। मेरा जी चाहता है उनसे कहूँ भगवान् के लिए वापस चलिए, मगर जबान नहीं खुलती। चेतना ने जैसे इस संकट का सामना करने के लिए सब दरवाजे बन्द कर लिए। डरता हूँ कहीं जैक्सन साहब फिसले तो अपना काम तमाम है। यह तो तैराक है, निकल जाएंगे, मैं लहरों की खुराक बन जाऊँगा। अफसोस आता है अपनी बेवकूफी पर कि तैरना क्यों न सीख लिया? यकायक जैक्सन ने मुझे दोनों हाथों से कंधें के ऊपर उठा लिया। हम बीच धार में पहुँच गये थे। बहाव में इतनी तेजी थी कि एक-एक कदम आगे रखने में एक-एक मिनट लग जाता था। दिन को इस नदी में कितनी ही बार आ चुका था लेकिन रात को और इस मझधार में वह बहती हुई मौत मालूम होती थी दस -बारह कदम तक मैं जैक्सन के दोनों हाथों पर टंगा रहा। फिर पानी उतरने लगा। मैं देख न सका, मगर शायद पानी जैक्सन के सर के ऊपर तक आ गया था। इसीलिए उन्होंने मुझे हाथों पर बिठा लिया था। जब गर्दन बाहर निकल आयी तो जोर से हंसकर बोले- लो अब पहुँच गये।

मैंने कहा- आपको आज मेरी वजह से बड़ी तकलीफ हुई।

जैक्सन ने मुझे हाथों से उतारकर फिर कंधे पर बिठाते हुए कहा- और आज मुझे जितनी खुशी हुई उतनी आज तक कभी न हुई थी, जर्मन कप्तान को कत्ल करके भी नहीं। अपनी माँ से कहना मुझे दुआ दें।

घाट पर पहुँचकर मैं साहब से रुखसत हुआ, उनकी सज्जनता, नि:स्वार्थ सेवा, और अदम्य साहस का न मिटने वाला असर दिल पर लिए हुए। मेरे जी में आया, काश मैं भी इस तरह लोगों के काम आ सकता। तीन बजे रात को जब मैं घर पहुँचा तो होली में आग लग रही थी। मैं स्टेशन से दो मील सरपट दौड़ता हुआ गया। मालूम नहीं भूखे शरीर में इतनी ताकत कहां से आ गयी थी। अम्मां मेरी आवाज सुनते ही आंगन में निकल आयीं और मुझे छाती से लगा लिया और बोली- इतनी रात कहां कर दी, मैं तो सांझ से तुम्हारी राह देख रही थी, चलो खाना खा लो, कुछ खाया-पिया है कि नहीं?

वह अब स्वर्ग में हैं। लेकिन उनका वह मुहब्बत-भरा चेहरा मेरी आंखों के सामने है और वह प्यार-भरी आवाज कानों में गूंज रही है। मिस्टर जैक्सन से कई बार मिल चुका हूँ। उसकी सज्जनता ने मुझे उसका भक्त बना दिया हैं। मैं उसे इन्सान नहीं फरिश्ता समझता हूँ।

समाप्त

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