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प्रेमचन्द की कहानियाँ 46

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :170
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9807
आईएसबीएन :9781613015445

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का सैंतालीसवाँ अन्तिम भाग


गजेन्द्र दिल में सहम उठा मगर बहादुरी दिखाने के लिए घोड़े के पास जाकर उसके गर्दन पर इस तरह थपकियां दीं कि जैसे पक्का शहसवार है, और बोला- जानवर तो जानदार है मगर मुनासिब नहीं मालूम होता कि आप लोग तो पैदल चलें और मैं घोड़े पर बैठूं। ऐसा कुछ थका नहीं। मैं भी पैदल ही चलूंगा, इसका मुझे अभ्यास है। सूबेदार ने कहा- बेटा, जंगल दूर है, थक जाओगे। बड़ा सीधा जानवर है, बच्चा भी सवार हो सकता है।

गजेन्द्र ने कहा- जी नहीं, मुझे भी यों ही चलने दीजिए। गप-शप करते हुए चलेंगे। सवारी में वह लुफ्त कहां? आप बुजर्ग हैं, सवार हो जांय। चारों आदमी पैदल चले। लोगों पर गजेन्द्र की इस नम्रता का बहुत अच्छा असर हुआ। सभ्यता और सदाचार तो शहरवाले ही जानते हैं। तिस पर इल्म की बरक। थोड़ी दूर के बाद पथरीला रास्ता मिला। एक तरफ हरा-भरा मैदान दूसरी तरफ पहाड़ का सिलसिला। दोनों ही तरफ बबूल, करील, करौंद और ढाक के जंगल थे। सूबेदार साहब अपनी-फौजी जिन्दगी के पिटे हुए किस्से कहते चले आते थे। गजेन्द्र तेज चलने की कोशिश कर रहा था। लेकिन बार-बार पिछड़ जाता था। और उसे दो-चार कदम दौड़कर उनके बराबर होना पड़ता था। पसीने से तर हांफता हुआ, अपनी बेवकूफी पर पछताता चला जाता था- यहां आने की जरूरत ही क्या थी, श्यामदुलारी महीने-दो-महीने में जाती ही। मुझे इस वक्त कुत्ते की तरह दौड़ते आने की क्या जरुरत थी। अभी से यह हाल है। शिकार नजर आ गया तो मालूम नहीं क्या आफत आएगी। मील-दो-मील की दौड़ तो उनके लिए मामूली बात है मगर यहां तो कचूमर ही निकल जायगा। शायद बेहोश होकर गिर पडूं।
पैर अभी से मन-मन-भर के हो रहे थे।

यकायक रास्ते में सेमल का एक पेड़ नजर आया। नीचे लाल-लाल फूल बिछे हुए थे, ऊपर सारा पेड़ गुलनार हो राह था। गजेन्द्र वहीं खड़ा हो गया और उस पेड़ को मस्ताना निगाहों से देखने लगा। चुन्नू ने पूछा- क्या है जीजा जी, रुक कैसे गये?

गजेन्द्र सिंह ने मुग्ध भाव से कहा- कुछ नहीं, इस पेड़ का आर्कषक सौन्दर्य देखकर दिल बाग-बाग हुआ जा रहा है। अहा, क्या बहार है, क्या रौनक है, क्या शान है कि जैसे जंगल की देवी ने गोधूलि के आकाश को लज्जित करने के लिए केसरिया जोड़ा पहन लिया हो या ऋषियों की पवित्र आत्माएं अपनी शाश्वत यात्रा में यहा आराम कर रही हों, या प्रकृति का मधुर संगीत मूर्तिमान होकर दुनिया पर मोहिनी मन्त्र डाल रहा हो आप लोग शिकार खेलने जाइए, मुझे इस अमृत से तृप्त होने दीजिए।

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