| कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
    राजकुमारी ने वाष्परुद्ध
      कण्ठ से कहा- इस अनाथिनी को सनाथ करके आपने
      चिर-ऋणी बनाया, और विह्वल होकर हम्मीर के अंक में सिर रख दिया। 
    
    कैलवाड़ा-प्रदेश
      के छोटे-से दुर्ग के एक प्रकोष्ठ में राजकुमार हम्मीर बैठे हुए चिन्ता में
      निमग्न हैं। सोच रहे थे - जिस दिन मुंज का सिर मैंने काटा, उसी दिन एक
      भारी बोझ मेरे सिर दिया गया, वह पितृव्य का दिया हुआ महाराणा-वंश का
      राजतिलक है, उसका पूरा निर्वाह जीवन भर करना कर्तव्य है। चित्तौर का
      उद्धार करना ही मेरा प्रधान लक्ष्य है। पर देखूँ, ईश्वर कैसे इसे पूरा
      करता है। इस छोटी-सी सेना से, यथोचित धन का अभाव रहते, वह क्योंकर हो सकता
      है? रानी मुझे चिन्ताग्रस्त देखकर यही समझती है कि विवाह ही मेरे चिन्तित
      होने का कारण है। मैं उसकी ओर देखकर मालदेव पर कोई अत्याचार करने पर
      संकुचित होता हूँ। ईश्वर की कृपा से एक पुत्र भी हुआ, किन्तु मुझे नित्य
      चिन्तित देखकर रानी पिता के यहाँ चली गयी है। यद्यपि देवता-पूजन करने के
      लिये ही वहाँ उनका जाना हुआ है, किन्तु मेरी उदासीनता भी कारण है। भगवान
      एकलिंगेश्वर कैसे इस दु:साध्य कार्य को पूर्ण करते हैं, यह वही जानें। 
    
    इसी
      तरह की अनेक विचार-तरंगें मानस में उठ रही थीं। सन्ध्या की शोभा सामने की
      गिरि-श्रेणी पर अपनी लीला दिखा रखी है, किन्तु चिन्तित हम्मीर को उसका
      आनन्द नहीं। देखते-देखते अन्धकार ने गिरिप्रदेश को ढँक लिया। हम्मीर उठे,
      वैसे ही द्वारपाल ने आकर कहा- महाराज विजयी हों। चित्तौर से एक सैनिक,
      महारानी का भेजा हुआ, आया है। 
    
    थोड़ी ही देर में सैनिक
      लाया गया
      और अभिवादन करने के बाद उसने एक पत्र हम्मीर के हाथ में दिया। हम्मीर ने
      उसे लेकर सैनिक को विदा किया, और पत्र पढऩे लगे- 
    			
		  			
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