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जयशंकर प्रसाद की कहानियां

जयशंकर प्रसाद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :435
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9810
आईएसबीएन :9781613016114

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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ


अब फिरोज़ा और इरावती सामने खड़ी हो गयीं। सरदार ने घोड़े पर से उतरते हुए पूछा- फिरोज़ा, यह तुम हो बहन!

हाँ भाई, बलराज! मैं हूँ - और यह है इरावती! पूरी बात जैसे न सुनते हुए बलराज ने कहा- फिरोज़ा, अहमद से युद्ध होगा। इस जंगल को पार कर लेने पर तुर्क सेना जाटों का नाश कर देगी, इसलिए यहीं उन्हें रोकना होगा। तुम लोग इस समय कहाँ जाओगी?

जहाँ कहो, बलराज। अहमद की छाया से तो मुझे भी बचना है। फिरोज़ा ने अधीर होकर कहा।

डरो मत फिरोज़ा, यह हिन्दुस्तान है, और यह हम हिन्दुओं का धर्म-युद्ध है। ग़ुलाम बनने का भय नहीं।-बलराज अभी यह कह ही रहा था कि वह चौंककर पीछे देखता हुआ बोल उठा- अच्छा, वे लोग आ ही गये। समय नहीं है। बलराज दूसरे ही क्षण में अपने घोड़े की पीठ पर था। अहमद की सेना सामने आ गई। बलराज को देखते ही उसने चिल्लाकर कहा- बलराज! यह तुम्हीं हो।

हाँ, अहमद।

तो हमलोग दोस्त भी बन सकते हैं। अभी समय है-कहते-कहते सहसा उसकी दृष्टि फिरोज़ा और इरावती पर पड़ी। उसने समस्त व्यवस्था भूलकर, तुरन्त ललकारा-पकड़ लो इन औरतों को?- उसी समय बलराज का भाला हिल उठा। युद्ध आरम्भ था।

जाटों की विजय के साथ युद्ध का अन्त होने ही वाला था कि एक नया परिवर्तन हुआ। दूसरी ओर से तुर्क-सेना जाटों की पीठ पर थी। घायल बलराज का भीषण भाला अहमद की छाती में पार हो रहा था। निराश जाटों की रण-प्रतिज्ञा अपनी पूर्ति करा रही थी। मरते हुए अहमद ने देखा कि गजनी की सेना के साथ तिलक सामने खड़े थे। सबके अस्त्र तो रुक गये, परन्तु अहमद के प्राण न रुके। फिरोज़ा उसके शव पर झुकी हुई रो रही थी। और इरावती मूर्च्छित हो रहे बलराज का सिर अपनी गोद में लिये थी। तिलक ने विस्मित होकर यह दृश्य देखा।

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