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			 कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
    “तू
      ही जा, मैं थक गयी हूँ।” नरगिस चली गयी। मालती की झुकी हुई डाल की अँधेरी
      छाया में धड़कते हुए हृदय को हाथों से दबाये नूरी खड़ी थी! पीछे से किसी
      ने उसकी आँखों को बन्द कर लिया। 
    
    नूरी की धड़कन और बढ़
      गयी। उसने साहस से कहा— “मैं पहचान गयी।” 
    
    “.....” 
    
    ‘जहाँपनाह’
      उसके मुँह से निकला ही था कि अकबर ने उसका मुँह बन्द कर लिया और धीरे से
      उसके कानों मे कहा— “मरियम को बता देना, सुलताना को नहीं; समझी न! मैं उस
      कुञ्ज में जाता हूँ।” अकबर के जाने के बाद ही सुलताना वहाँ आयी। नूरी उसी
      की छत्र-छाया में रहती थी; पर अकबर की आज्ञा! उसने दूसरी ओर सुलताना को
      बहका दिया। मरियम धीरे-धीरे वहाँ आयी। वह ईसाई बेगम इस आमोद-प्रमोद से
      परिचित न थी। तो भी यह मनोरंजन उसे अच्छा लगा। नूरी ने अकबरवाला कुञ्ज उसे
      बता दिया। घण्टों के बाद जब सब सुन्दरियाँ थक गयी थीं, तब मरियम का हाथ
      पकड़े अकबर बाहर आये। उस समय नौबतखाने से मीठी-मीठी सोहनी बज रही थी। अकबर
      ने एक बार नूरी को अच्छी तरह देखा। उसके कपोलों को थपथपाकर उसको पुरस्कार
      दिया। आँख-मिचौनी हो गयी! 
    
    सिकरी की झील जैसे लहरा
      रही है, वैसा
      ही आन्दोलन नूरी के हृदय में हो रहा है। वसन्त की चाँदनी में भ्रम हुआ कि
      उसका प्रेमी युवक आया है। उसने चौककर देखा; किन्तु कोई नहीं था। मौलसिरी
      के नीचे बैठे हुए उसे एक घड़ी से अधिक हो गया। जीवन में आज पहले ही वह
      अभिसार का साहस कर सकी है। भय से उसका मन काँप रहा है; पर लौट जाने का मन
      नहीं चाहता। उत्कण्ठा और प्रतीक्षा कितनी पागल सहेलियाँ हैं! दोनों उसे
      उछालने लगीं। किसी ने पीछे से आकर कहा—”मैं आ गया।” 
    			
		  			
						
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