| कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
    “पर
      मैं वहाँ न जाऊँगा। नूरी! मुझे भूल जाओ।” नूरी उसे अपने हाथों में जकड़े
      थी; किन्तु याकूब का देश-प्रेम उसकी प्रतिज्ञा की पूर्ति माँग रहा था।
      याकूब ने कहा—”नूरी! अकबर सिर झुकाने से मान जाय सो नहीं। वह तो झुके हुए
      सिर पर भी चढ़ बैठना चाहता है। मुझे छुट्टी दो। मैं यही सोचकर सुख से मर
      सकूँगा कि कोई मुझे प्यार करता है।” नूरी सिसककर रोने लगी। याकूब का कन्धा
      उसके आँसुओं की धारा से भीगने लगा। अपनी कठोर भावनाओं से उन्मत्त और
      विद्रोही युवक शाहजादा ने बलपूर्वक अभी अपने को रमणी के बाहुपाश से
      छुड़ाया ही था कि चार तातारी दासियों ने अमराई के अन्धकार से निकलकर दोनों
      को पकड़ लिया। अकबर की बिसात अभी बिछी थी। पासे अकबर के हाथ में थे। दोनों
      अपराधी सामने लाये गये। अकबर ने आश्चर्य से पूछा—”याकूब खाँ?” 
    
    याकूब
      के नतमस्तक की रेखाएँ ऐंठी जा रही थीं। वह चुप था। फिर नूरी की ओर देखकर
      शाहंशाह ने कहा—”तो इसीलिए तू काश्मीर जाने की छुट्टी माँग रही थी?” 
    
    वह भी चुप। 
    
    “याकूब!
      तुम्हारा यह लड़कपन यूसुफ खाँ भी न सहते; लेकिन मैं तुम्हें छोड़ देता
      हूँ। जाने की तैयारी करो। मैं काबुल से लौटकर काश्मीर आऊँगा।” संकेत पाते
      ही तातारियाँ याकूब को ले चलीं। नूरी खड़ी रही। अकबर ने उसकी ओर देखकर
      कहा—”इसे बुर्ज में ले जाओ।” नूरी बुर्ज के तहखाने में बन्दिनी हुई। 
    			
		  			
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