| कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
    नारद- भाई, मैं तो नहीं
      निर्णय करूँगा; पर, आप लोगों के लिए एक पंचायत
      करवा दूँगा, जिसमें आप ही निर्णय हो जायगा। 
    
    इतना कहकर नारदजी चलते
      बने। 
    
    वटवृक्ष-तल
      सुखासीन शंकर के सामने नारद हाथ जोड़कर खड़े हैं। दयानिधि शंकर ने हँसकर
      पूछा- क्यों वत्स नारद! आज अपना कुछ नित्य कार्य किया या नहीं?” 
    
    नारद ने विनीत होकर कहा-
      नाथ, वह कौन कार्य है?” 
    
    जननी ने हँसकर कहा- वही
      कलह-कार्य। 
    
    नारद-
      माता! आप भी ऐसा कहेंगी, तो नारद हो चुके; यह तो लोग समझते ही नहीं कि यह
      महामाया ही की माया है, बस, हमारा नाम कलह-प्रिय रख दिया है। 
    
    महामाया सुनकर हँसने
      लगीं। 
    
    शंकर- (हँसकर)- कहो, आज
      का क्या समाचार है? 
    
    नारद-
      और क्या, अभी तो आप यों ही मुझे कलहकारी समझे हुए बैठे हैं, मैं कुछ
      कहूँगा, तो कहेंगे कि बस तुम्हीं ने सब किया है। मैं जाता तो हूँ झगड़ा
      छुड़ाने, पर, लोग मुझी को कहते हैं। 
    
    शंकर- नहीं, नहीं, तुम
      निर्भय होकर कहो। 
    
    नारद-
      आज कुमार से और गणेशजी से डण्डेबाजी हो चुकी थी। मैंने कहा-आप लोग ठहर
      जाइए, मैं पंचायत करके आप लोगों का कलह दूर कर दूँगा। इस पर वे लोग मान
      गये हैं। अब आप शीघ्र उन लोगों के पञ्च बनकर उनका निबटारा कीजिए। 
    			
		  			
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