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			 कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
    सेनापति
      ने मधूलिका की ओर देखा। वह खोल दी गई। उसे अपने पीछे आने का संकेत कर
      सेनापति राजमन्दिर की ओर बढ़े। प्रतिहारी ने सेनापति को देखते ही महाराज
      को सावधान किया। वह अपनी सुख-निद्रा के लिये प्रस्तुत हो रहे थे; किन्तु
      सेनापति और साथ में मधूलिका को देखते ही चञ्चल हो उठे। सेनापति ने कहा- जय
      हो देव! इस स्त्री के कारण मुझे इस समय उपस्थित होना पड़ा है। 
    
    महाराज
      ने स्थिर नेत्रों से देखकर कहा- सिंहमित्र की कन्या! फिर यहाँ क्यों? क्या
      तुम्हारा क्षेत्र नहीं बन रहा है? कोई बाधा? सेनापति! मैंने दुर्ग के
      दक्षिणी नाले के समीप की भूमि इसे दी है। क्या उसी सम्बन्ध में तुम कहना
      चाहते हो? 
    
    देव! किसी गुप्त शत्रु ने
      उसी ओर से आज की रात में
      दुर्ग पर अधिकार कर लेने का प्रबन्ध किया है और इसी स्त्री ने मुझे पथ में
      यह सन्देश दिया है। 
    
    राजा ने मधूलिका की ओर
      देखा। वह काँप उठी। घृणा और लज्जा से वह गड़ी जा
      रही थी। राजा ने पूछा- मधूलिका, यह सत्य है! 
    
    हाँ, देव! 
    
    राजा
      ने सेनापति से कहा- सैनिकों को एकत्र करके तुम चलो मैं अभी आता हूँ।
      सेनापति के चले जाने पर राजा ने कहा- सिंहमित्र की कन्या! तुमने एक बार
      फिर कोशल का उपकार किया। यह सूचना देकर तुमने पुरस्कार का काम किया है।
      अच्छा, तुम यहीं ठहरो। पहले उन आतताईयों का प्रबन्ध कर लूँ। 
    
    अपने
      साहसिक अभियान में अरुण बन्दी हुआ और दुर्ग उल्का के आलोक में अतिरञ्जित
      हो गया। भीड़ ने जयघोष किया। सबके मन में उल्लास था। श्रावस्ती-दुर्ग आज
      एक दस्यु के हाथ में जाने से बचा था। आबाल-वृद्ध-नारी आनन्द से उन्मत्त हो
      उठे। 
    			
		  			
						
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