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कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
ऊषा की आभा पूर्व में
दिखाई पड़ रही है। चन्द्रमा की मलिन ज्योति तारागण
को भी मलिन कर रही है।
तरंगों से शीतल
दक्षिण-पवन धीरे-धीरे संसार को निद्रा से जगा रहा है।
पक्षी भी कभी-कभी बोल उठते हैं।
निर्जन
नदी-तट में एक नाव बँधी है, और बाहर एक सुकुमारी सुन्दरी का शरीर अचेत
अवस्था में पड़ा हुआ है। एक युवक सामने बैठा हुआ उसे होश में लाने का
उद्योग कर रहा है। दक्षिण-पवन भी उसे इस शुभ काम में बहुत सहायता दे रहा
है।
सूर्य की पहली किरण का
स्पर्श पाते ही सुन्दरी के नेत्र-कमल
धीरे-धीरे विकसित होने लगे। युवक ने ईश्वर को धन्यवाद दिया और झुककर उस
कामिनी से पूछा- मृणालिनी, अब कैसी हो?
मृणालिनी ने नेत्र खोलकर
देखा। उसके मुख-मण्डल पर हर्ष के चिह्न दिखाई
पड़े। उसने कहा- प्यारे मदन, अब अच्छी हूँ!
प्रणय
का भी वेग कैसा प्रबल है! यह किसी महासागर की प्रचण्ड आँधी से कम प्रबलता
नहीं रखता। इसके झोंके में मनुष्य की जीवन-नौका असीम तरंगों से घिर कर
प्राय: कूल को नहीं पाती। अलौकिक आलोकमय अन्धकार में प्रणयी अपनी
प्रणय-तरी पर आरोहण कर उसी आनन्द के महासागर में घूमना पसन्द करता है, कूल
की ओर जाने की इच्छा भी नहीं करता।
इस समय मदन और मृणालिनी
दोनों
की आँखों से आँसुओं की धारा धीरे-धीरे बह रही है। चंचलता का नाम भी नहीं
है। कुछ बल आने पर दोनों उस नाव में जा बैठे।
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