| कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
    अच्छा,
      तो आज से मेरे साथ-साथ घूमना पड़ेगा। यह कल तेरे लिये लाया हूँ! चल, आज से
      तुझे सान देना सिखाऊँगा। कहाँ, इसका कुछ ठीक नहीं। पेड़ के नीचे रात बिता
      सकेगा न! 
    
    कहीं भी रह सकूँगा; पर उस
      ठाकुर की नौकरी न कर सकूँगा?
      - शराबी ने एक बार स्थिर दृष्टि से उसे देखा। बालक की आँखे दृढ़ निश्चय की
      सौगन्ध खा रही थीं। 
    
    शराबी ने मन-ही-मन
      कहा-बैठे-बैठाये यह हत्या कहाँ से लगी? अब तो शराब न
      पीने की मुझे भी सौगन्ध लेनी पड़ी। 
    
    वह साथ ले जानेवाली
      वस्तुओं को बटोरने लगा। एक गट्ठर का और दूसरा कल का,
      दो बोझ हुए। 
    
    शराबी ने पूछा- तू किसे
      उठायेगा? 
    
    जिसे कहो। 
    
    अच्छा, तेरा बाप जो मुझको
      पकड़े तो? 
    
    कोई नहीं पकड़ेगा, चलो
      भी। मेरे बाप कभी मर गये। 
    
    शराबी आश्चर्य से उसका
      मुँह देखता हुआ कल उठाकर खड़ा हो गया। बालक ने गठरी
      लादी। दोनों कोठरी छोड़ कर चल पड़े। 
    
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