| कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
    बरसात का आरम्भ था। गाँव
      की ओर
      से पुलिस के पास कोई विरोध की सूचना भी नहीं मिली थी। गाँव वालों की
      छुरी-हँसिया और काठ-कबाड़ के कितने ही काम बनाकर वे लोग पैसे लेते थे। कुछ
      अन्न यों भी मिल जाता। चिडिय़ाँ पकड़कर, पक्षियों का तेल बनाकर, जड़ी-बूटी
      की दवा तथा उत्तेजक औषधियों और मदिरा का व्यापार करके, कंजरों ने गाँव तथा
      गढ़ के लोगों से सद्भाव भी बना लिया था। सबके ऊपर आकर्षक बाँसुरी जब उसके
      साथ नहीं बजती थी, तब भी बेला के गले में एक ऐसी नयी टीस उत्पन्न हो गयी
      थी, जिसमें बाँसुरी का स्वर सुनाई पड़ता था। 
    
    अन्तर में भरे हुए
      निष्फल प्रेम से युवती का सौन्दर्य निखर आया था। उसके कटाक्ष अलस, गति
      मदिर और वाणी झंकार से भर गयी थी। ठाकुर साहब के गढ़ में उसका गाना प्राय:
      हुआ करता था। 
    
    छींट का घाघरा और चोली,
      उस पर गोटे से ढँकी हुई
      ओढ़नी सहज ही खिसकती रहती। कहना न होगा कि आधा गाँव उसके लिए पागल था।
      बालक पास से, युवक ठीक-ठिकाने से और बूढ़े अपनी मर्यादा, आदर्शवादिता की
      रक्षा करते हुए दूर से उसकी तान सुनने के लिए, एक झलक देखने के लिए घात
      लगाये रहते। 
    
    गढ़ के चौक में जब उसका
      गाना जमता, तो दूसरा काम करते हुए अन्यमनस्कता की
      आड़ में मनोयोग से और कनखियों से ठाकुर उसे देख लिया करते। 
    
    मैकू
      घाघ था। उसने ताड़ लिया। उस दिन संगीत बन्द होने पर पुरस्कार मिल जाने पर
      और भूरे के साथ बेला के गढ़ के बाहर जाने पर भी मैकू वहीं थोड़ी देर तक
      खड़ा रहा। ठाकुर ने उसे देखकर पूछा-‘क्या है?’ 
    
    “सरकार! कुछ कहना है।” 
    			
		  			
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